Wednesday, October 20, 2010

मैं महाभारत का नहीं , कलियुग का " संजय " हूँ ( कलियुग का कडवा सच ) .....>>> संजय कुमार

महाभारत , शायद ही कोई भारतीय हो जो महाभारत और उसके किरदारों के बारे में ना जानता हो , यह तो पूरे विश्व में प्रसिद्द महापुराण या पौराणिक कथा है ! जब - जब महाभारत की बात चलती हैं तो उसके अनेक किरदार हमारे जहन में आते हैं ! महाभारत कई चीजों के लिए जानी जाती है ! भगवान् श्रीकृष्ण के लिए, उनके द्वारा दिए गए " गीता उपदेश " के लिए , अधर्म पर धर्म की जीत के लिए , पुत्र में मोह में अंधे पिता ध्रतराष्ट्र के लिए, स्त्री मान-अपमान के लिए , और भी हजारों किरदार हैं जो हमारे मष्तिष्क में दौड़ते हैं ! इन किरदारों में एक किरदार ऐसा भी हैं , जिसे हम भूल नहीं सकते और वह किरदार है " संजय " का ! जी हाँ वही " संजय " जो अंधे ध्रतराष्ट्र को युद्ध भूमि " कुरुक्षेत्र " का आँखों देखा हाल सुनाता था ! और युद्ध की एक-एक बात से ध्रतराष्ट्र को अवगत कराता था ! ठीक उसी प्रकार आज कलियुग में, मैं भी कई लोगों को आँखों देखा हाल बताता हूँ ! ( किसी युद्ध का नहीं ) क्योंकि आज मेरा जो कर्मक्षेत्र है वह ठीक महाभारत के " संजय " के समान है ! और मेरा कर्मक्षेत्र है " शेयर बाजार " का आँखों देखा हाल सुनाने का ! मैं कलियुग का "संजय " आपको आज कलियुग का हाल जो मेरी नजरें देख रही हैं , सुन रहीं हैं , सुना रहा हूँ ! शायद आपको पसंद आये ! तो लीजिये आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ , कलियुग का कडवा सच !

सबसे पहले बात करते हैं , विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानि हमारे " संविधान " "संसद भवन " की , वह मंदिर या वह स्थान जहाँ पर बैठकर आज के भगवान् ( मंत्रीगण ) हम बेचारी जनता पर राज कर रहे हैं ! और इस मंदिर में बैठे कई राजा-महाराजा , रानियाँ -महारानियाँ आपस में द्वन्द की भावना रखते हैं और मंदिर में ऐसा युद्ध करते हैं जहाँ ना तो कोई नियम हैं और ना ही कोई अनुशासन ! आज इनके द्वारा हमारा सिर शर्म से झुक रहा है , अपना महत्त्व खोता यह मंदिर ! बुत बने बैठे ये राजे-महाराजे एक-दूसरे पर जूते -चप्पल की बरसात तक करते हैं ! कभी -कभी नोटों की गड्डियाँ भी दिखाते हैं ! यहाँ बैठा राजा चुपचाप सिर्फ सुनता है, और बेचारा कुछ कर नहीं पाता , आज के इस राजा का उस मंदिर में कोई मूल्य नहीं हैं ! जिस तरह बेचारा ध्रतराष्ट्र .........

आज कलियुग में भी " समुद्र मंथन " हो रहा है ! आज इस समुद्र मंथन के पानी को मैं कीचड के रूप में देख रहा हूँ , जहाँ से संजीवनी बूटी नहीं मौत का सामान निकल रहा है , ( ड्रग्स नशीली बस्तुएं ) हीरे-मोती नहीं, मंथन से वो भ्रष्ट अधिकारी बाहर निकल रहे हैं जिनके घर आम जनता की गाढ़ी कमाई से खरीदे गए सोने-चांदी के भंडार मिल रहे हैं ! समुद्र मंथन से धर्म नहीं अधर्म और भ्रष्टाचार निकल रहा हैं ! समुद्र मंथन से " कामधेनु" गाय माता नहीं , इस देश की गरीबी , भुखमरी , और कुपोषण बहार निकल रहा है ! समुद्र मंथन से देवता नहीं कलियुग के दानव निकल रहे हैं जो इस देश को खा जाना चाहते हैं ! समुद्र मंथन के दौनों ओर भ्रष्टाचारी खड़े हुए हैं, एक ओर नेता तो दूसरी ओर आज के भ्रष्ट अधिकारी ! यही भ्रष्ट लोग आज कलियुग का समुद्र मंथन कर रहे हैं ! समुद्र मंथन से अमृत के रूप में "राष्ट्रमंडल खेल" निकल रहे हैं , जिसे पीने के लिए देश में मारामारी हो रही है ! क्योंकि इस तरह का अमृत कई सदियों में निकलता है ! और यह अमृत इस बार कलियुगी राक्षसों के हाँथ लग गया और अमृत का प्याला राक्षसों ने पी भी लिया और अमर हो गए ! आज कलियुग में ना तो कोई विष्णु है जो मोहिनी रूप धर कर इनसे यह प्याला छीन ले और बचाले इस देश को ! इसकी प्रतिष्ठा और मान-सम्मान ..............

आज कलियुग में , मैं देख रहा हूँ की, हमारे ५००० वर्षों के संस्कार अब पूरी तरह धूमिल हो रहे हैं ! ना माँ-बाप का सम्मान और ना ही उनके प्रति भक्ति ! इन्सान आज इतना गिर गया है, कि उसे इन्सान कहते हुए भी घिन आ जाती है ! कारण इन्सान स्वयं है , वह आज ऐसे ऐसे काम कर रहा है जिसके बारे में तो भगवान् भी नहीं सोच सकते ! इन्सान द्वारा इंसानों का व्यापार , धर्म का व्यापार, धर्म के बड़े ठेकेदारों द्वारा नारी व्यापार ( जिश्म्फरोशी ) , गुरु -शिष्य की छवि का कलंकित होना , संस्कारों का व्यापार , मान-सम्मान का व्यापार , शासन और साम्राज्य का व्यापार , झूंठ-फरेब -धोखा ! छीन रहे भूखों का निवाला , गरीबों का दमन ! कलियुग के आधुनिक साधन जिन पर इन्सान पूरी तरह निर्भर हैं , इन्सान के लिए उपयोगी कम अनुपयोगी ज्यादा साबित हो रहे हैं !

महाभारत में जहाँ भगवान् द्रोपदी की लाज बचाने आते हैं , वहीँ आज कई द्रोपदी रोज दुशाशन के हांथों कुचली जा रहीं हैं ! क्या इस कलियुग में भी कोई कृष्ण आएगा जो इस कलियुग के शत्रुओं और अधर्म का नाश करे ? क्या कोई भीम-अर्जुन आयेंगे जो नारी अपमान का बदला लेंगे ? ना जाने और क्या-क्या देखना पड़ेगा कलियुग के इस " संजय " को

( कुछ नया लिखने का एक छोटा सा प्रयास )

धन्यवाद

6 comments:

  1. आज या तो सब घॄतराष्ट्र है ....या उन्हे घॄतराष्ट्र हो जाना पड़ता है ...

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  2. एक सफल प्रयास रहा ये भी... दोनों समयों का तुलनात्मक वर्णन प्रशंसनीय है.. लेकिन बस यही फर्क है संजय जी कि आज के संजय उतने अशक्त नहीं जितने महाभारत के समय के थे.. :)

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  3. bahut sundar kurukshetra kaa ankho dekha hal batayaa aapne...he sanjay apni baat jaari rakho....dhritrastra jaananaa chahta hai ki aage kya ho raha hai...

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  4. श्रीमान संजय जी
    अफसोस ये हैं अब इस कुरूक्षेत्र में श्री कृष्ण नहीं है। और नही आने की सभावना है। इसलिए जिये जाओं इस राजनिती के दो पाटों के बीच

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  5. आज कलियुग में , मैं देख रहा हूँ की, हमारे ५००० वर्षों के संस्कार अब पूरी तरह धूमिल हो रहे हैं ! ना माँ-बाप का सम्मान और ना ही उनके प्रति भक्ति ! इन्सान आज इतना गिर गया है, कि उसे इन्सान कहते हुए भी घिन आ जाती है !....

    संजय जी , बहुत अच्छे है आपके विचार .... हम अपनी इंसानियत तो बचाए रखें ...यही बहुत है ...

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  6. बहुत अच्छे है आपके विचार संजय जी

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