आज पूरा विश्व जिस महाप्रलय से डर रहा है , उसका जिम्मेदार कोई और नहीं हम मानव ही हैं ! आज हम लोगों ने ही इस महाप्रलय को स्वयं निमंत्रण दिया है ! पिछले बर्ष जो जापान के साथ हुआ था , वो महाप्रलय हम सभी ने अपनी आँखों से देखा है ! क्या हमने उससे कुछ सबक लिया ? प्रक्रति के इस महाप्रलय से , क्या हमने कुछ सीखा ? शायद नहीं ! क्या आप जानते हैं ? इस महाप्रलय का कारण क्या है ? शायद आप जानते हैं , इसका कारण, क्योंकि कारण हम स्वयं ही हैं ! जब कारण हम ही हैं तो प्रक्रति को दोष देने से क्या होगा ! आज हमने अपने आपको इतना व्यस्त कर लिया है कि, हम अपने बारे में सोचने के अलावा शायद कुछ और नहीं कर पाते , ( मंहगाई , भ्रष्टाचार , घोटाले , संसद , सरकार , लोकपाल , अन्ना-रामदेव इसके अलावा कुछ भी नहीं ) यदि हम कभी भी प्रकृति के बारे में सोचते या उसको बचाने के लिए कुछ करते तो शायद इस तरह के महाप्रलय से बच जाते ! प्राक्रतिक महाप्रलय की जिम्मेदार प्रक्रति नहीं हम इंसान हैं ! आज हम लोग जिस तरह प्रक्रति से छेड़छाड़ कर रहे हैं ! या यूँ कहें उसके साथ बलात्कार कर रहे हैं , हम उसको जिस तरह से तहस-नहस और नेस्तनाबूत कर रहे हैं ! प्रकृति का जब इस तरह दोहन होता रहेगा तो प्रकृति का बदला लेना जायज है ! प्रक्रति समय समय पर हम सबको चेतावनी जरुर देती और आगाह करती है कि , वक़्त रहते संभल जाइये वर्ना ........... उसकी चेतावनी अगर जापान में आये प्रलय जैसी है तो अंदाजा लगाइए उसका प्रकोप कितना भयंकर होगा ! उसके ख्याल से ही इंसानी रूह काँप जाती है ! देश को आधुनिक बनाने के चक्कर में जिस तरह हमने बड़े - बड़े जंगलों का सफाया किया है , उसी का नतीजा है ये सब , वृक्षारोपण के नाम पर होता भ्रष्टाचार भी इसकी एक बड़ी बजह है ! सड़क निर्माण और हजारों किलोमीटर लम्बे हाइवे बनाने में जिस तरह लाखों-करोड़ों पेड़ों को काट दिया जाता है, या उनको काट दिया गया है , उनकी भरपाई हम आज तक नहीं कर पाए और शायद कभी कर भी नहीं पायेंगे ! हम सब अच्छी सड़क मार्गों का आनंद लेते हैं वो भी प्रक्रति का दोहन करते हुए ! बड़े - बड़े खेत -खलिहानों और बड़े - बड़े पेड़ों को साफ़ कर भू-माफिया अपनी जेबें भर रहे हैं ! बड़े -बड़े प्राक्रतिक मैदानों को समतल कर शोपिंग माल बनाये जा रहे हैं ! हमारे देश में वृक्षारोपण की कई मुहीम चलायी जाती हैं ! लेकिन हम कितने सफल होते हैं वृक्षारोपण जैसी मुहीम में ! आज जहाँ हर दिन हर पल भ्रष्टाचार हो रहा है ! वहां प्रक्रति के साथ भी हम धोखा कर रहे हैं ! हम लोगों ने हजारों - लाखों पेड़ लगाए तो हैं लेकिन कहाँ ? आप तो जानते ही होंगे सिर्फ कागजों में , हम भले ही पेड़ कागजों में लगायें , लेकिन प्रक्रति अपना हिसाब सबके समक्ष ही लेगी ! यदि हमारे पास प्राकृतिक संपदा नहीं हैं तो क्या होगा इस ब्रह्माण्ड का ? कुछ नहीं वचेगा इस प्रथ्वी पर हर जगह सिर्फ तवाही और तवाही ! इसलिए हमें रोकना होगा इस तरह के महाप्रलय को ! पर्यावरण और प्रकृति इस ब्रह्माण्ड की सबसे कीमती धरोहर ! हम आधुनिक तौर पर तो सुन्दर हो गए किन्तु प्राकर्तिक सुन्दरता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है ! प्रकृति ने इस कायनात को अपना सर्वश्व दिया है ! और हम कुछ भी नहीं दे पाए ! इस प्रकृति ने इंसानों को इनको इतने उपहार दिए हैं , जिसका ऋण ये मानव कभी नहीं उतार सकता !
आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है ........ अभी भी वक़्त है ...... रूठी हुई प्रकृति को मनाने का ....... तो मना लीजिये .. अब देर ना कीजिये
ये प्रकृति और पर्यावरण आपके हैं ..... अपनों का ख्याल रखिये ...................
धन्यवाद
अपनों का ख्याल रखिये ..
ReplyDeleteसुंदर सन्देश.
पर्यावरण को बचाने से हम भी बचे रहेंगे।
ReplyDelete"प्रकृति का बचाव यानि मानव जाति का ही नहीं बल्कि संसार में निवाश करने बाले हर प्राणी का बचाव हे "
ReplyDeleteप्रकर्ति के पक्छ में लिखी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
पर्यावरण प्यार करो, इससे न खिलवाड करो,
ReplyDeleteयही हमारी प्राण रक्षक,इसको न विषाक्त करो,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
अभी भी वक़्त है ...... रूठी हुई प्रकृति को मनाने का ....... तो मना लीजिये .. अब देर ना कीजिये
ReplyDeleteये प्रकृति और पर्यावरण आपके हैं ..... अपनों का ख्याल रखिये ...................
सही कहा आपने समय रहते चेत गए तो ठीक वर्ना अंजाम सबको ही भुक्तना होगा ... बहुत बढ़िया प्रस्तुति..
Paryawaran kee suraksh hamare hee haathon me hai lekin ham hee hatbal hoke baith jate hain!
ReplyDeleteपर्यावरण दिवस पर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
क्या बात है....बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । आपकी लेखनी का दायरा विस्तृत होता जा रहा है । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । कामना है कि आप निरंतर सृजनरत रहें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआवश्यक अपील ...
ReplyDeletesahi kaha agar abhi nahi chete to fir kabhi nahi
ReplyDeletebadhai
rachana
पर्यावरण दिवस पर एक सार्थक प्रस्तुति ...
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