Wednesday, June 20, 2012

हे " भारत माँ " ......>>> संजय कुमार

तेरे दिल में अभी और भी 
जख्मों की जगह है !
तेरा दिल जख्मी हुआ था 
जब मुंगलों ने तेरी छाती पर ,
पाँव जमाया था !
तेरा दिल जख्मी हुआ था 
जब अंग्रेजों ने तुझको 
बेड़ियों में जकड़ा था !
तेरा दिल जख्मी हुआ था 
जब तेरे जवान बेटे 
वीरगति को प्राप्त हुए थे !
पर शायद तब तुझे 
इस बात की ख़ुशी तो 
हुई होगी कि ,
तेरी आने वाली औलादें 
अब सुखी , सुरक्षित रहेंगी 
पर तेरा दिल 
और भी जख्मी हुआ  
यह देखकर 
कि , तेरी सोच के विपरीत 
तेरी औलादें ही 
आपस में एक-दुसरे को 
रुला रही हैं !
बेईमानी , स्वार्थ , यौन शोषण 
और भ्रष्टाचार के 
अवगुणों में पड़कर !
क्या तेरे दिल में  ?
अब भी , और जख्मों के लिए 
जगह है !
" भारत माँ "

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद  

9 comments:

  1. जगह नहीं मजबूरी है माँ की ... और फिर उसके बच्चे ही तो हैं जो जख्म दे रहे हैं ...

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  2. अभी तक मानसिक दासता की बेड़ियाँ पड़ी हैं..

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  3. Gaargi ji dwara behtareen rachana!

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  4. मन के भावों का सुंदर संम्प्रेषण,,,,गार्गी जी को बहुत२ बधाई

    MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...

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  5. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
    इंडिया दर्पण पर भी आएँ। यह मेरा फेवरिट ब्लॉग है।

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  6. भावमय करते शब्‍द ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ...

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना ....
    माँ तो एक समुन्दर हे जिसके शहन की कोई सीमा नहीं और शहन किया हर सुख दुःख को पर आज भी यह जारी हे ।

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  8. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.

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  9. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    ..... रचना के लिए बधाई स्वीकारें....!!!

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