तेरे दिल में अभी और भी
जख्मों की जगह है !
तेरा दिल जख्मी हुआ था
जब मुंगलों ने तेरी छाती पर ,
पाँव जमाया था !
तेरा दिल जख्मी हुआ था
जब अंग्रेजों ने तुझको
बेड़ियों में जकड़ा था !
तेरा दिल जख्मी हुआ था
जब तेरे जवान बेटे
वीरगति को प्राप्त हुए थे !
पर शायद तब तुझे
इस बात की ख़ुशी तो
हुई होगी कि ,
तेरी आने वाली औलादें
अब सुखी , सुरक्षित रहेंगी
पर तेरा दिल
और भी जख्मी हुआ
यह देखकर
कि , तेरी सोच के विपरीत
तेरी औलादें ही
आपस में एक-दुसरे को
रुला रही हैं !
बेईमानी , स्वार्थ , यौन शोषण
और भ्रष्टाचार के
अवगुणों में पड़कर !
क्या तेरे दिल में ?
अब भी , और जख्मों के लिए
जगह है !
" भारत माँ "
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
जगह नहीं मजबूरी है माँ की ... और फिर उसके बच्चे ही तो हैं जो जख्म दे रहे हैं ...
ReplyDeleteअभी तक मानसिक दासता की बेड़ियाँ पड़ी हैं..
ReplyDeleteGaargi ji dwara behtareen rachana!
ReplyDeleteमन के भावों का सुंदर संम्प्रेषण,,,,गार्गी जी को बहुत२ बधाई
ReplyDeleteMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
बहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
इंडिया दर्पण पर भी आएँ। यह मेरा फेवरिट ब्लॉग है।
भावमय करते शब्द ... उत्कृष्ट प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteमाँ तो एक समुन्दर हे जिसके शहन की कोई सीमा नहीं और शहन किया हर सुख दुःख को पर आज भी यह जारी हे ।
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete..... रचना के लिए बधाई स्वीकारें....!!!