Wednesday, February 1, 2012

टूट चुकी है माला और मोती भी बिखर गए .....>>>> संजय कुमार

एक - एक मोती चुनकर , एक ही धागे में कई मोतियों को पिरोकर बनाई जाती है माला ! माला फूलों की , हीरे - जवाहरात , नग , सोने - चाँदी और भी कई प्रकार की होती है ! जब माला किसी के गले में पहनाई जाती है तो पहनने वाले का महत्त्व और भी कहीं ज्यादा बड़ जाता है ! या फिर माला उन्हीं के गले में डाली जाती है जो उसके असली हक़दार होते हैं ! खैर ये तो मालाओं की व्याख्या है ! किन्तु आज मैं जिस माला की बात कर रहा हूँ उसका तात्पर्य हम सभी से है और वो मोतियों की माला हमारा संयुक्त परिवार है ! जैसे एक माला अपने में सभी मोतियों को पिरोकर रखती है ठीक उसी प्रकार एक संयुक्त परिवार अपने परिवार के सभी सदस्यों को एक माला के समान बाँध कर रखता है ! एक संयुक्त परिवार में सब कुछ होता है ! सभी सदस्यों का आपस में एक - दुसरे के प्रति मान- सम्मान , आदर , संस्कार , एक -दुसरे के प्रति प्रेम का भाव और अपनापन , जब ये सभी चीजें एक ही जगह उपस्थित होती हैं, तो वो जगह एक परिवार कहलाता है ! समाज का सर्वश्रेष्ठ परिवार ! कहा जाता हैं एकता में जो शक्ति है वो शायद किसी अकेले इंसान में नहीं है ! अकेला इंसान आज के समय में कुछ भी नहीं है ! यह बात बिलकुल सही है ! क्योंकि हमने देखी है एकता और संगठन की शक्ति ! फिर चाहे वह युवा संगठन हो या फिर कोई छोटा मोटा संगठन हो या कोई दल , हम सब इसकी ताक़त को जानते हैं ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ अपने पारिवारिक संगठन की, अपने संयुक्त परिवार की ! एक समय था जब हम किसी के घर जाते थे तो वहां पर हमारी मुलाकात परिवार के सभी सदस्यों से होती थी ! उस घर में दादाजी -दादीजी, माता -पिता , चाचा-चाची, भैया-भाभी, और भी कई रिश्ते जिनसे एक सम्पूर्ण परिवार बनता है ! ( आज मुमकिन नहीं ) उन सभी से मुलाकात करके मन को एक अनूठी ख़ुशी मिलती थी मन प्रसन्न हो जाता था ! हम कभी नहीं भुला पाते थे उस घर का प्यार , सभ्यता -संस्कृति , अपनापन, मान-सम्मान और सच्चे रिश्तों की महक ! ( आज हमारे पास घर हैं किन्तु परिवार नहीं ) पर जैसे जैसे समय बीत रहा है ! जब इन्सान अपने आप से मतलब रखने लगा है ! सिर्फ अपने बारे में सोचने लगा है ! परिवार के बारे में सोचना छोड़ दिया है ! जब परिवार के किसी एक सदस्य के अन्दर से अपनेपन का भाव खत्म हो जाता है तो ये शुरुआत होती है एक संयुक्त परिवार रुपी माला के टूटने की ! और यहाँ से शुरू होता है विघटन और वदलाव उस परिवार की एकता में , एक मोती के टूटने से बिखरती है माला ! आजकल हम देख रहे हैं , कि इन्सान कितनी जल्दी अपना सब्र खो देता है , जिस कारण से आये दिन घर- परिवार में लड़ाई - झगडे की स्थिति बन रही है , और आये दिन होने वाले इन्हीं झगड़ों के कारण इंसान दूर हो रहा है अपनों से अपने परिवार से या फिर खींच रहा है दीवार अपने ही घर - परिवार के बीच में ! तो क्या स्थिति हो जाती है उस घर परिवार की ? एक बड़ा सा परिवार बदल जाता है चिड़ियों के घोंसलों जैसा ! जब एक बार अपनों के बीच दीवार खिंच जाती है तो फिर हमारा परिवार , परिवार नहीं कहलाता ! ईंटों की चार दीवारी से बना घर कहलाता है और बन जाता है ईंट पत्थर से निर्मित एक मकान ! आज इस विघटन और वदलाव से हमारा कितना अहित हो रहा है , शायद हम ये बात बहुत अच्छे से जानते है ! लेकिन जानकर भी अनजान हैं ! इसका असर आज हम देख रहे हैं ! अपने बच्चों से दूर होते संस्कार के रूप में , दूर होती रिश्तों की महक , खत्म होती अपनत्व की भावना और प्रेम , एक-दुसरे का मान-सम्मान करने का भाव ! और ये सब कुछ हो रहा है परिवार के बंटने से ! जब से हम वदले तब से वदल गयी हमारे घर- परिवार की कहानी ! और ये कहानी आज की है ! आज ये कहानी " घर - घर की कहानी " है !
जब हम लोग परिवार के सभी सदस्यों के साथ मनोरंजन करते थे तो कैसा महसूस करते थे आप ? और जब आज आप एक बंद कमरे में अपना मनोरंजन करते हैं , वह भी अकेले तो कैसा महसूस करते हैं ? आज इन्सान का घर - आँगन, बदल रहा है छोटी छोटी कोठरियों में .........
ना निर्मित होने दें अपने घर- आँगन, कोठरियों में .......... ना टूटने दें माला - ना बिखरने दें मोती !

धन्यवाद

16 comments:

  1. बिखरते संयुक्त परिवारों की पीड़ा सार्थकता से व्यक्त की है।

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  2. ओह!! ...ये बिखरने का अहसास भी बहुत दुखद है....कभी ई न टूटे ये माला ..

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  3. संजय जी,



    आपने वाकई एक ऐसे मार्मिक विषय पर इतनी सटीक और दिल को झूने बाली पंक्तिया लिखी हैं ,

    जो वाकई बहुत सुन्दर हैं.

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  4. सयुंक्त परिवारों के टूटने से हमने बहुत कुछ खोया है ....एक जो माहौल घर का होता था उसे भी ....आज व्यक्ति खुद पर केन्द्रित हो गया है और उसे यह आभास ही नहीं की मिलकर कैसे रहा जा सकता है ....!

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    1. Jab kabhee sayunk pariwaar ke bareme sochtee hun,to dilme ek tees uthtee hai....bikharte jaa rahe hain,toot rahe hain...

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  5. क्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति

    शुक्रवारीय चर्चामंच

    की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??

    charchamanch.blogspot.com

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  6. आज ये कहानी " घर - घर की कहानी " है !
    सत्य कहा है संजय भाई आज हर कोई परिवार के साथ के बजाये अकेले ही मोरंजन करने की सोचता है
    ......परन्तु बिखरने का अहसास कभी न कभी हर इंसान को परेशां करता है

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    1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |

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  7. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |

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  8. आपके भाव उच्च हैं..बहुत कम लोग ऐसा सोचते हैं..
    kalamdaan.blogspot.in

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  9. संजय जी,..आपके इतने उच्च विचारों को मेरा नमन,
    बेहतरीन ,लाजबाब प्रस्तुती

    MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

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  10. ना निर्मित होने दें अपने घर- आँगन, कोठरियों में .......... ना टूटने दें माला - ना बिखरने दें मोती !

    संजय जी क्या नेक विचार प्रेषित किया है. इस सोच को बनाये रखे और दूसरों को भी प्रेरणा दें. अभिनन्दन.

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  11. बहुत हि सुन्दर आलेख

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  12. bahut sunder soch kash ke aesa ho jaye
    badhai
    rachana

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  13. आज इन्सान का घर - आँगन, बदल रहा है छोटी छोटी कोठरियों में .........

    सही कहा आपने ....
    शायद इसलिए दुनिया का अंत होने वाला है ....
    फिर से इक नई शुरुआत .....

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