Saturday, November 5, 2011

जी हाँ ... मैं जिन्दा हूँ ...... >>> संजय कुमार

जी हाँ मैं सच कह रहा हूँ ! मैं जिन्दा हूँ और इसका प्रमाण ये है कि मैं आप लोगों के लिए ये ब्लॉग लिख रहा हूँ और जब तक साँस चलेगी पूरी कोशिश करूंगा की मैं कुछ अच्छा लिखता रहूँ ! मेरे जिन्दा होने के और भी कई प्रमाण हैं जो ये साबित करेंगे कि " मैं जिन्दा हूँ " क्योंकि इन्ही से ये प्रमाणित होगा ! जैसे मेरे पास राशन कार्ड है , पासपोर्ट है , ड्रायविंग लायसेंस है , वोटर कार्ड है , पेन कार्ड है , मेरे पास " आधार " है ( आम आदमी का अधिकार ) ये सभी पहचान पत्र सबूत हैं , जो मेरे जिन्दा होने का प्रमाण देते हैं ! यही सबूत मुझे इंसानों की श्रेणी में भी लाते हैं ! ये सभी मेरे भारतीय होने का भी प्रमाण है ! जिस किसी के पास पहचान पत्र नहीं है तो उसे हम भारतीय कैसे मानें ! क्योंकि आज पहचान सिद्ध होने पर ही हमें भारतीय समझा जायेगा ! यदि इस प्रकार का एक भी पहचान पत्र, या अपने होने का एक भी प्रमाण पत्र अगर किसी के पास ना हो तो क्या हम उस नागरिक को मृत समझेंगे या फिर जिन्दा ? ये बात भले ही लिखने और पढ़ने में अजीब लग रही हो किन्तु ये सत्य है ! आज हमारे देश में जिस किसी के पास एक भी प्रकार का कोई पहचान पत्र नहीं है तो उस इंसान को लगभग मृत माना जाता है या मृत मान लेना चाहिए ! बैंक में खाता खोलना हो तो पहचान चाहिए , राशन कार्ड बनवाना हो तो पहचान चाहिए , किसी भी तरह का पहचान पत्र बनवाना हो तो हमें अपने होने का प्रमाण देना अनिवार्य होता है ! यदि आपके पास कोई पहचान पत्र है तो ठीक , वर्ना आप अपने जिन्दा होने के प्रमाण ढूँढ़ते रहिये ! यदि कोई अधिकारी आपके जिन्दा होने का सबूत देता है तो आप अपने आप को जिन्दा मान सकते हैं ! इस देश में ऐसे लाखों लोग हैं जिनका कहीं भी कोई जिक्र नहीं है ! ना तो ये लोग वोटर लिस्ट में हैं, ना ही राशन कार्ड है , और ना ही इनका किसी भी प्रकार का कोई पहचान पत्र है ! देश में ऐसे लाखों मजदूर हैं , लाखों भिखारी हैं , बंधुआ मजदूर हैं जिनके पास ना तो सिर पर छत है और ना ही तन पर कपड़ा, फिर इनकी पहचान कौन देगा ? क्या पहचान है ऐसे लोगों की ? या सिर्फ जनसँख्या की गिनती हैं ! हमारे यहाँ जब एक आम आदमी को अपनी पहचान देने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है तो फिर आप सोच सकते हैं उस व्यक्ति को कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता होगा , अपने जिन्दा होने का प्रमाण देने में जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है ! ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है जहाँ गरीबों को मिलने वाली आर्थिक योजनाओं का लाभ देश के ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी उठा रहे हैं ! और बेचारा गरीब तो बस मरने के लिए पैदा हुआ है ! कई बार तो ये भी देखा और सुना गया है कि एक मृत आदमी को कागजों और फाइलों में जिन्दा कर उसका लाभ उसे मिलने वाली राशी और राशन का फायदा कई लोग वर्षों तक उठाते हैं ! यहाँ तक तो ठीक है , यह भी देखा गया है कि एक जिन्दा आदमी को फाइलों में मृत बताकर योजनाओं का लाभ कोई और बर्षों तक उठाता रहता है ! और बेचारा जिन्दा आदमी चिल्लाते-चिल्लाते एक दिन मर जाता है कि " मैं जिन्दा हूँ "
अक्सर हमें भी कई बार अपने जिन्दा होने के सबूत देने पड़ते हैं ! हम जीते-जागते इंसान , सांस लेते इंसान , रगों में दौड़ता हुआ खून इस बात की गवाही देता है कि , हम जिन्दा हैं ........... क्या वाकई में हम जिन्दा है ? या प्रमाण देने पर ही हमें जिन्दा समझा जायेगा ! ( सोच कर अवश्य बताएं )


धन्यवाद

14 comments:

  1. सारगर्भित पोस्ट....

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  2. जीवन के लिये प्रमाण नहीं, काम चाहिये..

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  3. बैंक हर साल एक फार्म भरवाता है कि मैं जिन्‍दा हूँ। वैसे जब तक आप देश और समाज के लिए कुछ नहीं करते तब तक आप मृत समान ही हैं। आज गरीब भी सोच ले कि मुझे कुछ करना है तो वह निश्चित रूप से कुछ करेगा। गरीब वही है जो कुछ नहीं करना चाहता।

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  4. होता तो यही है..आम लोगों के साथ

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  5. आज की जिंदगी में सिर्फ प्रमाण ही जुड रहा है और करने के नाम में और कुछ नहीं है दोस्त जी | बहुत सुन्दर कहा ....की मैं जिन्दा हूँ :)

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  6. प्रिय बंधुवर संजय कुमार चौरसिया जी
    सस्नेहाभिवादन !

    यह भी देखा गया है कि एक जिन्दा आदमी को फाइलों में मृत बताकर योजनाओं का लाभ कोई और बर्षों तक उठाता रहता है ! और बेचारा जिन्दा आदमी चिल्लाते-चिल्लाते एक दिन मर जाता है कि " मैं जिन्दा हूँ "
    अच्छा मनन योग्य आलेख है …
    बधाई !

    मैंने ज़िंदा होने की सार्थकता के लिए कुछ यूं कहा है -
    तू यहां आया है गर… तो नाम कुछ करता ही जा !
    याद रक्खे ये जहां… तू काम वो करता ही जा !
    हो ज़रा औरों को… तेरे होने का एहसास भी ,
    भर सके ख़ुशियों से गर… दामन हर इक भरता ही जा !!


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. आदरणीय राजेंद्र जी ,
    ब्लॉग पर आकर होंसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  8. बहुत उम्दा आलेख.
    ज़मीर ही तो ज़िंदा चाहिए.

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  9. जिन्दा आदमी चिल्लाते-चिल्लाते एक दिन मर जाता है कि " मैं जिन्दा हूँ "
    बहुत सुन्दर आलेख.....संजय जी

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  10. बहुत ही सुंदर मनन योग्य आलेख,मुझे अच्छा लगा..
    मेरे पोस्ट में स्वागत है.....

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  11. जिन्दा को प्रमाण भी चाहिये शायद अब यह भी जीवन है. सुंदर आलेख.

    बधाई.

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  12. अजित गुप्ताजी ने बहुत अच्छी बात कही .....

    वैसे जब तक आप देश और समाज के लिए कुछ नहीं करते तब तक आप मृत समान ही हैं। आज गरीब भी सोच ले कि मुझे कुछ करना है तो वह निश्चित रूप से कुछ करेगा। गरीब वही है जो कुछ नहीं करना चाहता।

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  13. bahut achchha aalekh ! sach hai kise kahe ham zinda..

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