Thursday, October 6, 2011

रावण , दशानन का दहन करने से पहले , अंत कीजिये .....>>> संजय कुमार

सभी ब्लौगर साथियों को विजयदशमी, दशहरा पर्व की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
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विजयदशमी पर्व को हम सब आज असत्य पर सत्य की जीत , अधर्म पर धर्म की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं ! क्या रावण का अंत करने के साथ ही बुराई और असत्य का अंत हो गया ? आज भी हमारे आस-पास सौ सिरों वाले अनेकों रावण उपस्थित है ! आज भी बुराई , अधर्म , झूंठ - फरेब अपने चरम पर हैं ! रावण में शायद उतनी बुराइयाँ नहीं थीं जितनी कि आज के रावणों में है ! दशानन लंकेश तो अपनी शक्ति के मद में चूर था , उसे सच का ज्ञान था उसे पता था कि राम के हांथों ही मेरा अंत होना है फिर भी उसने बुराई और अधर्म का सम्पूर्ण नाश करवाने के लिए ऐसा किया ! आज अगर हमें सही मायने में विजयदशमी का पर्व और उसकी उपयोगिता को समझना है तो हमें अपने आसपास व्याप्त झूंठ-फरेब , बुराई , असत्य , पाप-दुरचार, को मिटाना होगा ! हमें अपने आस-पास का माहौल अच्छा बनाने के लिए , अपनों की ख़ुशी के लिए , अपना जीवन सुखमय बिताने के लिए अपने अन्दर से अहम् , काम , क्रोध , लालच , मोह को पूरी तरह त्यागना होगा ! क्योंकि ये भी दशानन , रावण का ही एक रूप है ! जिस तरह प्रभु श्री राम ने रावण का अंत कर इस दुनिया से असत्य , अधर्म और बुराई का अंत किया था ठीक उसी प्रकार अब हम सबको राम बनना होगा और इस समस्त बुराइयों का अंत करना होगा ! तभी कहलायेगा सही विजयदशमी , दशहरा पर्व !
क्या आप रावण का दहन करने से पहले अपने अन्दर के रावण का दहन करेंगे ! यदि करेंगे तो सच में आप कहलायेंगे विश्वविजेता ! इसलिए कहता हूँ रावण दहन से पहले अंत कीजिये ..........
विजयदशमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं ढेरों शुभ-कामनाएं
जय श्रीराम ------ जय श्रीराम ----------- जय श्रीराम


धन्यवाद

8 comments:

  1. Aapko bhee Vijayadashmee kee anek shubh kamnayen!

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  2. विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. विजयदशमी की हार्दिक बधाइयाँ

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  4. सीख देती हुई सार्थक लेख आपको भी बहुत २ बधाई दोस्त :)

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  5. धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
    ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है । अधर्म के लिए कर्म करना, अधर्म है ।
    कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
    धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, परोपकार, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
    धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
    by- kpopsbjri

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