Wednesday, September 21, 2011

मैं अचेत ......>>>> संजय कुमार

हे पिता अनुभूति शक्ति
मैं अचेत
लडखडा रहे है मेरे पैर
आकर थाम लो हाँथ
अशांति , बैचैनी
और हताशा है छायी
अँधेरे के सिवा
और कोई नहीं है
पास मेरे
आके पिता
दो मुझको
प्रकाश , प्रेम का आधार
पाने को तेरा प्रत्यक्ष वात्सल्य
कब से लालायित है
मेरा मन
इसी इक्षा के सहारे ही
शायद अभी तक जीवित है
मेरा अंतर मन !


( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

13 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना है, लेकिन कुछ भूलों को सुधार कर पुनः संपादित करे तो ज्यादा सुंदर लगेगी।

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति मन भावों की।

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  3. काफी अच्छी अभिव्यक्ति ....

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति, बेहतरीन कविता.

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  5. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  6. सुन्दर प्रस्तुति के लिये गार्गी जी को बधाई।

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  7. Aapko or Gargi ji ko sunder rachna ke liye badhai.

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  8. आभार आपका गार्गी की कविता पढ़वाने के लिए..

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  9. बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है......पढ़वाने के लिए....आभार

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  10. मनो भावों को बांधती ,समर्पण भाव की रचना ,आवाहन करती उस दिव्यता का जिसे हम सभी धारण करना चाहतें हैं .

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