हे पिता अनुभूति शक्ति
मैं अचेत
लडखडा रहे है मेरे पैर
आकर थाम लो हाँथ
अशांति , बैचैनी
और हताशा है छायी
अँधेरे के सिवा
और कोई नहीं है
पास मेरे
आके पिता
दो मुझको
प्रकाश , प्रेम का आधार
पाने को तेरा प्रत्यक्ष वात्सल्य
कब से लालायित है
मेरा मन
इसी इक्षा के सहारे ही
शायद अभी तक जीवित है
मेरा अंतर मन !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना है, लेकिन कुछ भूलों को सुधार कर पुनः संपादित करे तो ज्यादा सुंदर लगेगी।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति मन भावों की।
ReplyDeleteकाफी अच्छी अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति, बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिये गार्गी जी को बधाई।
ReplyDeleteAapko or Gargi ji ko sunder rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteआभार आपका गार्गी की कविता पढ़वाने के लिए..
ReplyDeletebhut acha.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता लिखी है......पढ़वाने के लिए....आभार
ReplyDeleteमनो भावों को बांधती ,समर्पण भाव की रचना ,आवाहन करती उस दिव्यता का जिसे हम सभी धारण करना चाहतें हैं .
ReplyDeleteVery interesting, excellent post. Thanks for posting. I look forward to seeing more from you. Do you run any other sites?
ReplyDeleteIndia is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
Visit for India