मैं नास्तिक हूँ लोग कहते हैं
हाँ , अगर आडम्बर के बोझिल गहनों से
अपने और परमपिता
के प्रेम को ना सजाना नास्तिक होना है
तो मुझे ये पहचान कुबूल है ,
क्योंकि कोई भी शब्द
घ्रणा या प्रेम का का पात्र ,
नहीं होता
उस शब्द के प्रति भाव का निर्धारण तो
हम करते हैं जैसे " हाय ये चाँद "
अब इस वाक्य में आह भी है और ओह भी
ऐसे ही कोई प्रभु को आडंबरों के साथ अपनाता
और कोई आडम्बर के बिना
मैं नास्तिक अपने पिता से
मूक वार्ता करती हूँ
जब कोई सवाल मुझे परेशान कर देता है
तो पिता से ही
उसका जबाब देने को , कहती हूँ
और कोई यकीन करे ना करे
मेरे पिता प्रत्यक्ष जबाब देते हैं
पर अप्रत्यक्ष और मूक रहकर
एक बार पूरी श्रद्धा से
विना आडम्बर के
आप भी करके देखिये
यकीन हो जायेगा
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
दर्शन की गहन पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा।
ReplyDeleteमन में जब श्रद्धा का भाव हो तो विश्वास स्वत: ही हो जाता है ...शुक्रिया गार्गी को..कलम चलती रहे ..
ReplyDeletenice
ReplyDeleteनास्तिक का अर्थ भी हर व्यक्ति के लिए भिन्न है।
ReplyDeleteभाई , आडंबर छोड़ रहे हो यह बहुत अच्छी बात है,
ReplyDeleteसमय आएगा जब लोग आपको नास्तिक नहीं कहेंगे क्योंकि हमें कोई भी नास्तिक नहीं कहता। ...तब आपको भी नहीं कहेगा कोई।
तर्क मज़बूत और शैली शालीन रखें ब्लॉगर्स :-
हमारा संवाद नवभारत टाइम्स की साइट पर ,
दो पोस्ट्स पर ये कुछ कमेंट्स हमने अलग अलग लोगों के सवालों जवाब में दिए हैं। रिकॉर्ड रखने की ग़र्ज़ से इन्हें एक पोस्ट की शक्ल दी जा रही है।
भाई संजय, अपन भी आपकी ही कैटेगरी के हैं।
ReplyDeleteआडंबर सबके बस कि बात नहीं मैं भी नही करती।
ReplyDeleteभाव होना चाहिये।अच्छी रचना है।
मैं भी नास्तिक!!!
ReplyDeleteआशीष
--
मैंगो शेक!!!
बिल्कुल सही कहा....संजय जी
ReplyDelete@ दिनेश दिवेदी जी से सहमत हूँ
ReplyDeleteनास्तिक का अर्थ भी हर व्यक्ति के लिए भिन्न है।
गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....
ReplyDeleteगहन जीवन दर्शन apka
ReplyDeletepawan sharma
ksbkl satna