Saturday, September 3, 2011

लोग मुझे नास्तिक कहते हैं ....>>>> संजय कुमार

मैं नास्तिक हूँ लोग कहते हैं
हाँ , अगर आडम्बर के बोझिल गहनों से

अपने और परमपिता
के प्रेम को ना सजाना नास्तिक होना है
तो मुझे ये पहचान कुबूल है ,
क्योंकि कोई भी शब्द
घ्रणा या प्रेम का का पात्र ,
नहीं होता
उस शब्द के प्रति भाव का निर्धारण तो
हम करते हैं जैसे " हाय ये चाँद "
अब इस वाक्य में आह भी है और ओह भी
ऐसे ही कोई प्रभु को आडंबरों के साथ अपनाता
और कोई आडम्बर के बिना
मैं नास्तिक अपने पिता से
मूक वार्ता करती हूँ
जब कोई सवाल मुझे परेशान कर देता है
तो पिता से ही
उसका जबाब देने को , कहती हूँ
और कोई यकीन करे ना करे
मेरे पिता प्रत्यक्ष जबाब देते हैं
पर अप्रत्यक्ष और मूक रहकर
एक बार पूरी श्रद्धा से
विना आडम्बर के
आप भी करके देखिये
यकीन हो जायेगा

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

13 comments:

  1. दर्शन की गहन पंक्तियाँ।

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  2. बिल्कुल सही कहा।

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  3. मन में जब श्रद्धा का भाव हो तो विश्वास स्वत: ही हो जाता है ...शुक्रिया गार्गी को..कलम चलती रहे ..

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  4. नास्तिक का अर्थ भी हर व्यक्ति के लिए भिन्न है।

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  5. भाई , आडंबर छोड़ रहे हो यह बहुत अच्छी बात है,
    समय आएगा जब लोग आपको नास्तिक नहीं कहेंगे क्योंकि हमें कोई भी नास्तिक नहीं कहता। ...तब आपको भी नहीं कहेगा कोई।
    तर्क मज़बूत और शैली शालीन रखें ब्लॉगर्स :-
    हमारा संवाद नवभारत टाइम्स की साइट पर ,


    दो पोस्ट्स पर ये कुछ कमेंट्स हमने अलग अलग लोगों के सवालों जवाब में दिए हैं। रिकॉर्ड रखने की ग़र्ज़ से इन्हें एक पोस्ट की शक्ल दी जा रही है।

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  6. भाई संजय, अपन भी आपकी ही कैटेगरी के हैं।

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  7. आडंबर सबके बस कि बात नहीं मैं भी नही करती।
    भाव होना चाहिये।अच्छी रचना है।

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  8. मैं भी नास्तिक!!!
    आशीष
    --
    मैंगो शेक!!!

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  9. बिल्कुल सही कहा....संजय जी

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  10. @ दिनेश दिवेदी जी से सहमत हूँ
    नास्तिक का अर्थ भी हर व्यक्ति के लिए भिन्न है।

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  11. गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....

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  12. गहन जीवन दर्शन apka

    pawan sharma
    ksbkl satna

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