Sunday, January 16, 2011

कब तक अर्थी में ? .... >>> संजय कुमार

डोली में बैठ , जाने बाली

कब तक अर्थी में निकलेंगी

माँ तेरे दिए संस्कारों को हम

कब तक गले का फंदा बन पहनेंगी !

इन्सान कम , सामान अधिक

समझे जाते हैं , हम यहाँ

शालीनता हमारी बेवकूफी

हक मांगे तो बद्तमीजी

चुप रहें तो गलत कहलाते हैं

कुछ कहें तो उद्दंड बतलाये जाते हैं !

छोड़कर अपना सब कुछ

हम आये यहाँ

फिर भी पराये माने जाते हैं !

मायका कहता , घर ससुराल तुम्हारा है !

ससुराल कहे , मायका घर तुम्हारा है !

देकर रिश्ते , वारिस

और करके त्याग हम

उम्र भर

एक घर भी नहीं जुटा पाते हम !



( प्रिये पत्नी की कलम से )


धन्यवाद

14 comments:

  1. भावपूरित रचना, विडम्बना ही है कि त्यागपूरित जीवन का अधिकार नहीं मिल पाता है।

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  2. अखिर कब तक यही यक्ष प्रश्न है। शुभकामनायें।

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  3. बहुत गंभीर प्रश्न ...और हमेशा कोई उत्तर नहीं ...शुक्रिया आपका

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  4. बहुत गंभीर प्रश्न ..उत्तर कोई नहीं

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  5. पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है

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  6. सही प्रश्नों को उछाला है भावपूर्ण मार्मिक रचना में .....

    कब तक ऐसा ही चलता रहेगा ?

    कुछ न कुछ तो परिवर्तन अवश्य होना चाहिए ...आयर होगा भी |

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  7. सही कहा गार्गी ने ....
    एक घर भी नहीं जुटा पाते हम ...
    और कई-कई टुकड़ों में बँट जाते हम.....

    शुक्रिया आपका गार्गी की रचना हम तक पहुँचाने के लिए...

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  8. उम्र भर

    एक घर भी नहीं जुटा पाते हम !

    डोली चढ़दिआं मारीआं हीर चिकाँ ....
    मेनू रख लै बाबुला हीर आखे वे .....

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  9. एक ऐसा प्रश्न जो सिर्फ प्रश्न नहीं एक पूरा जीवन है.....

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  10. शालीनता हमारी बेवकूफी

    हक मांगे तो बद्तमीजी

    चुप रहें तो गलत कहलाते हैं

    कुछ कहें तो उद्दंड बतलाये जाते हैं
    .

    बहुत खूब कहा है

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  11. बढ़िया लेखन पर रानी(गार्गी)-संजय को बधाई.... ऐसी विकट समस्या हमारे देश में बनी ही रहेगी जब तक की शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं होगा और उसका सही तात्पर्य नहीं समझा जाएगा, जब तक हम अनुशासन में रहना, क़ानून के अनुसार चलना नहीं सीख लेंगे.... कभी तो नया सूरज उगेगा.. अच्छा है धैर्य धारण करें और सद्मार्ग पर चलने को प्रयत्नशील

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  12. बेहतरीन अभिव्यक्ति!वाह!

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  13. तभी तो कहा गया है दोस्त ..................

    अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ,

    आँचल मै दूध और आँखों मै पानी !

    सुन्दर रचना !

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