Tuesday, July 6, 2010

भिखारी नहीं हैं हम, हम तो ...>>> संजय कुमार

आजकल हमारे शहरों में भिखारियों की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है ! समझ नहीं आता इनकी संख्या इतनी क्यों बड़ रही है ! एक समय था जब हमारे घर एक निश्चित दिन कोई फ़कीर या जोशी या कोई ब्रह्मण आता था ! हम उसे अपने घर से आटा या रोटी दिया करते थे ! अब यह लोग तो कम नजर आते हैं , इनकी जगह अब भिखारियों ने ले ली है ! जो आटा या रोटी नहीं मांगते हैं, मांगते हैं तो पैसा ! जिनका ना तो कोई दिन होता है और ना कोई समय , यह कभी भी कहीं भी आ पहुंचते हैं ! इनकी संख्या कभी कभी किसी जगह इतनी हो जाती है , कि समझ नहीं आता, कि यह आम इंसानों का देश है या भिखारियों का ! हमारे देश में इतने भिखारी कैसे और कहाँ से आ गए ! क्या कारण हैं जो इनकी आबादी इतनी तेजी से बड़ती जा रही है ! भिखारी, इंसानी दुनिया का सबसे तिरष्कृत इन्सान होता है , जो हर जगह से ठुकराया जाता है ! वह इन्सान जिसकी ना तो कोई जात होती और ना ही कोई धर्म ! फिर भी हमने अक्सर यह देखा है कि यह भिखारी ज्यादातर धर्म के नाम पर ही भीख मांगते हैं ! चाहे मंदिर हो या मस्जिद , गुरुद्वारा या चर्च, हर जगह इनकी पहुँच होती है ! यूँ कह सकते हैं, इनका कार्य-क्षेत्र या इनकी कर्म-भूमि यही जगह होती हैं ! लेकिन हमारे देश में अब भिखारियों कि संख्या में दिन-प्रतिदिन इजाफा होता जा रहा हैं ! कुछ जन्म से तो कुछ कर्म से , मजबूरीवश तो कोई जानबूझकर भीख मांगने का काम करता रहता हैं ! अब हर जगह ये लोग देखे जा सकते हैं , कोई भी रूप लेकर आपके सामने आ सकते हैं ! एक बच्चे के रूप में, एक बूढ़ी और बेसहारा माँ के रूप में ! कभी अपनी जिंदगी का बोझ ढोती हुई किसी बुजुर्ग के रूप में ! असहाय और ठुकराए हुए !

क्या वाकई में यह लोग भीख मांगकर अपना पेट भरना चाहते हैं ! या उनकी मजबूरी उनसे यह सब करवा रही है ! कुछ लोगों के साथ यह बात हो सकती है ! वह लोग जिनके सर पर ना तो कोई छत है और ना ही उनकी देख-रेख करने बाला कोई ! कुछ अपने बच्चों द्वारा ठुकराए हुए होते हैं और कुछ बच्चों को उनकी माँ (बिन-व्याही) समाज के डर से किसी कचरे के ढेर पर यूँ ही फेंक जाती है ! अगर वह कुत्तों और सूअर का निबाला नहीं बने तो उनका भविष्य क्या होगा अंधकारमय या बन जाते हैं भिखारी ! आज कुछ लोगों का यह धंधा बन गया हैं ! हमारे महानगरों में तो यह एक व्यवसाय के रूप में प्रचलित हैं ! घरों से भागे बच्चों का !इस धंधे में शामिल लोग पूरी तरह इस्तेमाल करते हैं ! कभी उन्हें अपंग बना कर तो कभी उनको डरा धमकाकर इस धंधे में जबरन घुसेड़ दिया जाता है ! कुछ लोग इस धंधे को छोड़ना नहीं चाहते ! उन्हें लगता है कि जब आराम से मिल रहा है तो ज्यादा महनत क्यों कि जाए ! आजकल बहुत से ऐसे बच्चे हैं , जो स्कूल तो जाते हैं लेकिन एक निश्चित दिन कभी शनिदेव के नाम पर तो किसी और भगवान् के नाम पर हर हफ्ते यहीं काम करते हैं ! जब एक जवान आदमी भीख मांगता है तो बड़ा अजीव सा लगता है ! और उस पर गुस्सा भी बहुत आता है ! जब छोटे-छोटे बच्चे दिन-दिनभर कचरा बीन कर अपना पेट भर सकते हैं तो यह क्यों नहीं महनत करना चाहता ! वह सभी भिखारी जो किसी मजबूरी के चलते भीख मांगने का काम करते हैं और उनके पास और कोई चारा नहीं तो उनका भीख मांगना कुछ हद तक ठीक है ! क्योंकि आज एक आम इन्सान अपनी मदद तो स्वयं कर नहीं पाता तो फिर किसी और कि मदद कैसे करेगा ! हम सिर्फ उनसे सहानुभूति रख सकते हैं ! कोई भी इनकी मदद को आगे नहीं आता है, सरकार या कोई समाजसेवी संस्था सब अपनी रोटियां सेंक रहे हैं ! भिखारी अपना पूरा जीवन भीख मांगकर ही निकाल देता हैं ! और बस यही कहता रहता है !

भिखारी नहीं हैं हम ....... हम तो ..........


धन्यवाद

3 comments:

  1. हरदिन बड़ी होती जा रही समस्या पर.. उत्तम आलेख...

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  2. सचमुच भिखारी नहीं हैं हम.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  3. संजय भाई
    एक समकालीन समस्या को बखूबी उठाया है आपने....मुझे तो लगता है कि जन संख्या का एक बड़ा हिस्सा जीने का शोर्टकट ढूंढ रहा है जिसमे मेहनत की जगह सहानुभूति पाने पर जोर है....बिना श्रम के रोटी मिलने का प्रयास ही "भिखारी" बनाता है.

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