कल जब मैं बस से जा रही थी कौलेज
तब बस पर आया , तोंदू बच्चा एक
बिलकुल मटके जैसा था , उसका पेट
दिखाकर जिसको , उसने माँगा रुपया एक
मैंने कहा " दर्द और व्यंग्य " से
तुम्हें दिया यह किसने , काम नेक
गिड़गिडाकर बोला " माई "
बाप नहीं घर में , मेहताई है भूखे पेट !
लगा जैसे वह , किसी शिकारी का रट्टू तोता हो एक !
दांत थे उसके गुटखे से सने हुए ,
देख जिन्हें मैंने कहा
गुटखा खाते हो !
नहीं दूँगी तुम्हें , रुपया एक
पर गिड़ गिड़ाहट से अपनी
उसने जगाया , ह्रदय में तीव्र करुण भाव
और
जाने -अनजाने में
मैंने दिए उसे, रूपए दो ,
और जाते-जाते वह मुझे
दे गया प्रश्न अनेक !
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
हर बार यह दृश्य सोचने पर विवश करता है
ReplyDeletemarmik
ReplyDeleteSach....sawaal sochne pe wiwash to karta hai....sundar rachana!
Deleteबहुत सुन्दर सन्देश और हौसला बढ़ाती हुवी
ReplyDeletesunder sach ka bayan karti huyi marmik post .
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