Monday, January 16, 2012

बेटी की विदाई में , अब आंसू नहीं बहते .....>>>> संजय कुमार

विदाई , किसी भी लड़की के एवं उसके माता-पिता के जीवन की सबसे मुश्किल घड़ी, वो घड़ी जिसके लिये लड़की के माता -पिता जीवन भर एक-एक पैसा इकठ्ठा कर , लड़की के लिए एक अच्छे वर और घर की कामना करते हैं ! एक ओर लड़की के लिए वर-घर मिलने की ख़ुशी तो दूसरी ओर अपनी लाड़ली से दूर होने और बिछुड़ने का दुःख ! वहीँ दूसरी ओर लड़की का दुखी होना ! माता-पिता के घर नाजों से पली- बढ़ी , जीवन के हर दुःख से दूर , एक पल में अपने लोगों और अपना घर का छूट जाना ! विदाई के वक़्त माता-पिता और लड़की दोनों के अंतर्मन में यही भाव हिलोरें मारते है और यही भाव आंसू बनकर दोनों की आखों से छलकते हैं ! सच कहूँ तो विदाई के बाद भी लड़की और लड़के के माता-पिता रोते रहते हैं ! आज ये स्थिती बहुत से घरों में है ! खैर ये तो चलता रहेगा ! आज हम लोग जिस माहौल एवं परिवेश में जी रहे हैं उस युग को आधुनिक युग कहा जाता है ! ये वो आधुनिक युग है जिसमे हम अपनी सभ्यता, संस्कृति , संस्कार , सहयोग , समर्पण , अपनेपन का भाव जैसी चीजें लगभग भूल चुके हैं या भूलने के कगार पर हैं ! इस मशीनीकरण , आधुनिकीकरण ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया है ! किन्तु इस आधुनिकरण का एक सच ये भी है कि , इसने हमें बहुत कुछ अच्छा भी दिया है ! आधुनिकीकरण ने इंसान की सोच और विचार दोनों बदले हैं !
जब हमारे दादा-दादी या माता-पिता की शादी हुई होगी तब शायद ही उन्होंने शादी के पहले एक-दुसरे को कभी देखा हो या फिर कभी बात भी की हो , तब ऐसा संभव नहीं था ! किन्तु आज सब कुछ बदल गया है ! आज लड़का - लड़की दोनों को ही ये पहले से मालूम होता है कि , उनके सबंध की बात कहीं चल रही है क्योंकि आज लड़के -लड़की की विना अनुमति ये बिलकुल संभव नहीं है ! सगाई-मंगनी और बात पक्की होने से लेकर शादी के सात फेरों तक के बीच का समय आज लड़का-लड़की दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय माना जाता है ! इसी समय के दौरान दोनों एक-दुसरे को जानने समझने की कोशिश करते हैं , एक दुसरे के आचार-विचार समझने की कोशिश करते हैं ! ( सच कहूं तो एक -दुसरे के बीच प्रेम का बीजारोपण इन्हीं दिनों में होता है ) आज हमारे पास इतने आधुनिक साधन उपलब्ध हैं जिन्होंने हमारे बीच के प्रेम को कहीं ज्यादा बढ़ाया है एवं हमारे बीच की दूरियों को लगभग खत्म कर दिया है ! ( मोबाईल , इन्टरनेट ) एक ही शहर में रहने वालों के मन में तो एक-दुसरे से दूर होने का भाव तक नहीं होता ! इस स्थिती में लड़की कभी भी अपने आप को अपने माता -पिता से दूर नहीं समझती है ! आजकल तो दूर-दराज के छोटे-छोटे गावों - कस्बों तक में ये आधुनिक साधन उपलब्ध हैं ! फिर गाँव की लड़की हो या शहर की , अमीर की लड़की हो या गरीब की , दोनों की स्थिती लगभग एक जैसी होती है ! आजकल लगभग सभी शादियाँ " लव मैरिज " होती हैं ! क्योंकि लड़का-लड़की दोनों के बीच प्रेम शादी पूर्व ही शुरू हो जाता है ! यही स्थिती माता-पिता की भी होती है ! माता-पिता भी अपने आप को अपनी बेटी से दूर नहीं समझते हैं इसलिए एक-दुसरे के दिलों में दूर होने का भाव और अहसास तो होता है किन्तु बिछुड़ने का दुःख नहीं ! मन के भाव हमेशा पल दो पल , क्षण भर के होते हैं स्थायी नहीं इसलिए रोना भी क्षणिक होता है ! विदाई के वक़्त लड़की के हाँथ से जब कुछ छूटता है तो बहुत कुछ नया भी मिलता है जो उसे " सम्पूर्ण नारी " बनाता है ! हमारे दिलों में तकलीफ तब होती है जब हमारी बहन -बेटियां दहेज़ लोभियों के लालच का शिकार होती हैं ! रोना तो कमजोरों की निशानी माना जाता है ! आज की नारी रोने-धोने में विश्वास नहीं रखती है ! वो अच्छा और सिर्फ अच्छा करने में विश्वास रखती है ! आजकल विदाई में रोने-धोने का फैशन बहुत पुराना हो गया है ! बैंड -बाजों , ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते लोग , लुप्त होती शहनाई की आवाज ! डीजे की तेज ध्वनि में मद्धम पड़ते मन्त्र एवं वेदोपचार ! आज की आधुनिकता में सब कुछ विलुप्त होता जा रहा है ! इसी प्रकार विदाई के वक़्त लड़की के आंसू भी !
हमें आधुनिक साधनों का बहुत बहुत धन्यवाद करना चाहिए जो बर्षों पुरानी ये रोने की परम्परा का अंत कर रही है ! इस देश से अगर दहेज़ प्रथा पूरी तरह खत्म हो जाए दहेज़ लोभी बेटी और बहु में कोई अंतर ना समझें तो में ये बात पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ कि , इस देश में बेटियां कभी भी अपने मायके और ससुराल में अंतर नहीं करेंगी और उन्हें कभी भी अपनी विदाई में रोना नहीं पड़ेगा ! कभी भी बेटियां या उनके माता-पिता विदाई के वक़्त में कभी भी आंसू नहीं बहायेंगे !



धन्यवाद

7 comments:

  1. बहुत विचारणीय है भाई आपकी यह पोस्ट ...! ! सच में आज बहुत कुछ बदला है ...और यह निश्चित रूप से लाभदायक भी है अगर इंसान बुद्धिमता से काम ले तो ..!

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  2. अब सब गतिमय हो गया है, आवागमन भी अधिक हो गया है।

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  3. सशक्त और प्रभावशाली रचना|

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  4. बहुत ही अच्छे विचार हैं आपके ....मायके और ससुराल में फर्क न हो तो बात ही कुछ और हो .

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  5. क्योंकि आज लड़के -लड़की की विना अनुमति ये बिलकुल संभव नहीं है !
    .....बिलकुल सत्य है भाई आपकी यह पोस्ट विचारणीय है

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  6. सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.

    पधारें मेरे ब्लॉग पर भी और अपने स्नेहाशीष से अभिसिंचित करें मेरी लेखनी को, आभारी होऊंगा /

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
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    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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