व्याकुलता है , बेचैनी है
और अकुलाहट , मन वे आधार है
स्वार्थ तख़्त पर पैर पसारे
लेटा हर मानव आज है
स्थूल आत्मा कितनों की ही है
ऐसा लगता मुझको आज है
वर्ना गीता के उपदेशों के कागज़ पर
नहीं बेचता कोई चांट आज है
राम नाम का जोक बनाता
नैतिकता बेकार बताता
कमजोरों पर रौब जमाता ,
जहाँ ना गलती दिखती दाल
कुत्तों सी वहां दूम हिलाता
प्यार बेचता , ईमान बेचता
दया और चतुराई बेचता
इज्जत की बह खाल उधेड़ता
अपने स्वार्थ - तन को ढकने को
वस्त्रहीन हो बह आज नाचता
स्वार्थ की पैंजनिया बाँध
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
सन्नाट व्यंग, सच में अब यही रह गया है।
ReplyDeleteetni sundar
ReplyDeleteआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
behad umda abhivyakti.
ReplyDeleteस्वार्थ तख़्त पर पैर पसारे
ReplyDeleteलेटा हर मानव आज है
...umda abhivyakti
बहुत खूब लिखा है ......आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteसम्राट बुंदेलखंड की पहली प्रतियोगता के विजेता जानने के लिए आये इस ब्लॉग पर्
प्यार बेचता , ईमान बेचता
ReplyDeleteदया और चतुराई बेचता
इज्जत की बह खाल उधेड़ता
अपने स्वार्थ - तन को ढकने को
वस्त्रहीन हो बह आज नाचता
स्वार्थ की पैंजनिया बाँध
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है।
ReplyDeleteशुभकामनायें।
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDelete