Friday, July 29, 2011

स्वार्थ की पैंजनियां ....... >>>> संजय कुमार

व्याकुलता है , बेचैनी है
और अकुलाहट , मन वे आधार है
स्वार्थ तख़्त पर पैर पसारे
लेटा हर मानव आज है
स्थूल आत्मा कितनों की ही है
ऐसा लगता मुझको आज है
वर्ना गीता के उपदेशों के कागज़ पर
नहीं बेचता कोई चांट आज है
राम नाम का जोक बनाता
नैतिकता बेकार बताता
कमजोरों पर रौब जमाता ,
जहाँ ना गलती दिखती दाल
कुत्तों सी वहां दूम हिलाता
प्यार बेचता , ईमान बेचता
दया और चतुराई बेचता
इज्जत की बह खाल उधेड़ता
अपने स्वार्थ - तन को ढकने को
वस्त्रहीन हो बह आज नाचता
स्वार्थ की पैंजनिया बाँध

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

10 comments:

  1. सन्नाट व्यंग, सच में अब यही रह गया है।

    ReplyDelete
  2. etni sundar
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

    ReplyDelete
  3. स्वार्थ तख़्त पर पैर पसारे
    लेटा हर मानव आज है
    ...umda abhivyakti

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब लिखा है ......आभार

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा
    सम्राट बुंदेलखंड की पहली प्रतियोगता के विजेता जानने के लिए आये इस ब्लॉग पर्

    ReplyDelete
  6. प्यार बेचता , ईमान बेचता
    दया और चतुराई बेचता
    इज्जत की बह खाल उधेड़ता
    अपने स्वार्थ - तन को ढकने को
    वस्त्रहीन हो बह आज नाचता
    स्वार्थ की पैंजनिया बाँध


    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  7. आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है।
    शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.

    ReplyDelete