Friday, July 22, 2011

दौर ..........>>>>> संजय कुमार

एक ऐसा दौर आया
कि अपनों की वह
पुरानी छाप मिट गयी
एक भयानक तस्बीर खिंच गयी ,
वह सुखद हालात ,
वह चैन ,
जो कुछ था सब मिट गया
अब तो गर्म रेत रह गयी
लोग ना बदले ,
रिश्ते ना बदले ,
पर छाप बदल गयी ,
और फिर सोच बदलनी पड़ी !

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

12 comments:

  1. ये ज़िन्दगी है ये सब तो रिश्तों मे होता ही रहता है। अच्छे भाव। तो गार्गी भी लेखिका हैं? आशा है आगे भी उनको और पढने का अवसर मिलेगा। शुभकामनायें।

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  2. गार्गीजी की रचना बहुत अच्छी है ......आगे भी लिखती रहें

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  3. लोग ना बदले ,
    रिश्ते ना बदले ,
    पर छाप बदल गयी ,
    और फिर सोच बदलनी पड़ी !

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, गार्गी जी...

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  4. गार्गीजी की संवेदनशील रचना के लिए आपको और गार्गीजी को हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत अच्छी रचना गार्गी जी....

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  6. बदलते रिश्तों पर सटीक अभिव्यक्ति

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  7. सम्बन्धों का प्रवाह सदा ही बदलता रहता है।

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  8. .....संवेदनशील अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर.....आभार

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  9. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति......
    गार्गी जी ,हार्दिक बधाई

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