Tuesday, May 10, 2011

आज मैं भी बिकने को तैयार हूँ ! क्या है कोई खरीदार ? ....... >>> संजय कुमार

वैसे तो इस संसार में सब कुछ बिकाऊ है ! आज चारों तरफ खरीद - बिक्री का धंधा जोरों पर है ! इस देश में आज सब कुछ बिक रहा है ! कहीं इंसान बिक रहे हैं तो कहीं जानवर बिक रहे हैं ! कहीं ईमान बिक रहा है तो कहीं न्याय बिका रहा है ! करोड़ों में खिलाड़ी बिक रहे हैं तो कोई खेलों के नाम पर देश का मान - सम्मान बेच रहा है ! कहीं नेता बिक रहे हैं तो कहीं पार्टियाँ बिक रही हैं ! खरीद-बिक्री के इस धंधे में कई लोग ऐशोआराम की जिन्दगी जी रहे हैं ! दुखी है तो " आम आदमी " उसके पास पैसा नहीं है ! जब देखा कि इस देश में सब कुछ बिक रहा है तो सोचा चलो आज अपने आप को भी इस बाजार में बेचकर देखें शायद कोई खरीदार मिल जाए ! देखें कि आज हमारी क्या औकात है ? आज हमारा क्या वजूद है ? क्या हमारी भी कोई कीमत है ? क्या हम भी करोड़ों में बिक सकते हैं ? मैं इस देश का एक " आम आदमी " हूँ ! वो आम आदमी जो आज हर तरफ से निराश और परेशान है ! एक - एक पैसे को मोहताज है ! खुशियाँ क्या होती हैं ? सुख क्या होता है ? जिसकी चाहत में अपना पूरा जीवन घुट-घुट कर और अपने मन की इक्षाएं मारते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा है ! इस उम्मीद पर की कभी तो वो दिन आएगा जब उसके मन की मुरादें पूरी होंगी ! क्योंकि आज इंसान की सभी मनोकामनाएं सिर्फ पैसा ही पूरी कर सकता है ! क्योंकि आज पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है खुशियाँ भी ! ( आज का भगवान सिर्फ पैसा है ) सब कुछ पाने के लिए पैसा चाहिए और पैसा सुबह से शाम तक मजदूरी कर तो नहीं कमाया जा सकता या फिर इतनी आमदनी नहीं होती की अपनी खुशियों को हासिल कर सकें ! इंसान सुख और खुशियाँ पाने के लिए और अपनों को सुख देने के लिए कुछ भी कर सकता है ! यहाँ तक की अपने आपको बेच भी सकता है ! ऐसा वो इसलिए कर सकता है क्योंकि आज ऐसी - ऐसी चीजें बिक रहीं हैं वो भी करोड़ों और अरबों रूपए में जिन्हें देख " आम आदमी " यह कहने और करने पर मजबूर हो जाता है ! आज एक आम आदमी क्यों अपने आपको बेचने तक को तैयार हो गया है उसके पीछे भी वजह है ! हमारे देश में एक से बढकर एक साहूकार और अरबपति है जिन्होंने आम जनता का मेहनत पैसा अपनी तिजोरियों में बंद कर रखा है ! हमारे देश में या इस विश्व में जीवित चीजों से ज्यादा निर्जीव चीजों की बहुत अहमियत है ! तभी तो कोई भी निर्जीव बस्तु दो पांच हजार की नहीं बल्कि लाखों और करोड़ों में खरीद लेते हैं ! आखिर अमीरों के शौक हैं पैसा पानी की तरह बहाना , यह भी एक शौक है ! जैसे उनके जीवन में पैसे का तो कोई मूल्य ही नहीं हैं ! पर गरीब का क्या उसके जीवन में तो पैसा ही सब कुछ मायने रखता है ! कभी " किंगफिशर माल्या " " टीपू सुलतान " की तलवार करोड़ों में खरीद लेते हैं तो कभी " शराब " की दो बोतलें करोड़ों में , कहते हैं " शराब " जितनी पुरानी नशा उतना अच्छा ! कभी कोई " गांधीजी " के चश्मे और टोपी की बोली करोड़ों में लगाता है ! और भी कई ख़बरें ऐसी होती हैं जिन्हें सुन आम आदमी तो यही कहता है की कोई मुझे भी करोड़ों में खरीद ले , तो शायद मेरा और मेरे परिवार का जीवन सुधर जाए ! इंसानों से ज्यादा खरीद -फरोख्त तो आज विदेशों में हो रही है ! ये ख़बरें भी " आम आदमी " को हताश और निराश करती हैं ! अभी कुछ दिनों पहले विदेश में एक बुजुर्ग महिला ने अपनी करोड़ों की संपत्ति अपने " कुत्तों " के नाम कर दी थी ! इस खबर पर भी मैंने कई लोगों को यह कहते हुए सुना " काश हम कुत्ते होते " अभी चाइना में एक अरबपति ने एक कुत्ते को अपने शौक के लिए मात्र ६-७ करोड़ में खरीद लिया ! 6-7 करोड़ किसी के लिए मात्र होते हैं तो किसी के लिए उसकी सात पुश्तों को बदलने के लिए काफी हैं ! लन्दन में कुछ दिनों पहले एक महिला ने अपनी " कुतिया " का सिर्फ मन रखने और खुश करने के लिए उसका " स्वयंवर " रचाया और उस पर लाखों रूपए खर्च कर डाले ! अब " कुतिया " का भी " स्वयंवर " होने लगा है ! हमारे देश में आज भी यहाँ ऐसे लाखों परिवार हैं जिनके पास पैसा ना होने की बजह से उनके परिवारों की कुंवारी बेटियों की उम्र ३०-से ३५ पार कर चुकी है ! कई लड़कियों ने तो पैसे के अभाव में शादी तक नहीं की , ऐसी स्थिती में बेचारे " माँ-बाप " अपने आप को बेचने तक को तैयार हो जाते हैं ! ऐसा नहीं है की आज तक इस देश में इंसानों की खरीद-बिक्री ना हुई हो , खरीद -बिक्री तो हुई है ! इस देश में " इंसान के लालच ने मजबूरी को खरीद लिया " तभी तो गरीबी में मजबूर होकर अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए कई लड़कियां अपने शरीर का सौदा कर अपने आप को बेच देती हैं ! इंसान, लालच में आकर अपने ईमान का सौदा कर, अपने आपको बेईमानों के हांथों बेच देता हैं ! देश में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में जिन युवाओं का इस्तेमाल किया जाता है वो भी कहीं ना कहीं अपने आपको बेचकर अपने घर-परिवार को खुशियाँ देने के लिए अपना सौदा देश के दुश्मनों से करते हैं और हथियार उठा लेते हैं ! आज का भटका हुआ बेरोजगार युवा मतलब परस्त और धर्म परस्त राजनीति के हांथों बिक जाता है ! आज मैं देश का " आम आदमी " अपने आपको बेचने के लिए इस खरीद -फरोख्त के बाजार में लेकर आया हूँ ! अपनों को खुशियाँ देने के लिए !

क्या है कोई जो मुझे खरीद सके ?

धन्यवाद

12 comments:

  1. दिल तो दिल पर ही बिकते हैं।

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  2. आपको यदि स्‍वयं को बेचना है तो पहले अपनी खूबियां गिनायी होती और साथ ही कीमत भी। आम आदमी वैसे खूब बिकता है, जब बालक होता है तो उसका पिता अपनी शराब की पूर्ति के लिए उसे बाल-मजदूर बना देता है। युवा होने पर वह दहेज के नाम पर बिकता है और शायद इस देश का प्रत्‍येक युवा बिका भी है।

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  3. AAM AADMI KI MAJBURI KA HAI KI VO AAM AADMI HAI.VO HAMESA GHUT GHUT KAR JEETA HAI. -ABHAY SETH

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  4. ओह क्या जमाना आ गया है जब इन्सान खुद को बेचने पर आमदा हो जाये। कितनी बेबसी और लाचारी है लेकिन भाई इस मिट्टी की कोई कीमत नही दुनियाँ मे और आजकल तो इन्सानियत , संवेदनाओं की भी अहमियत नही कौन खरीदेगा। स्थिती बहुत चिन्ताजनक है। शुभकामनायें।

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति

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  7. वाह..क्या खूब ...कटाक्ष किया है...

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  8. खुशियाँ क्या होती हैं ? सुख क्या होता है ? जिसकी चाहत में अपना पूरा जीवन घुट-घुट कर और अपने मन की इक्षाएं मारते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा है ! इस उम्मीद पर की कभी तो वो दिन आएगा जब उसके मन की मुरादें पूरी होंगी ! क्योंकि आज इंसान की सभी मनोकामनाएं सिर्फ पैसा ही पूरी कर सकता है ! bilkul sahi kaha

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  9. har khareedaar ko baazaar me biktaa paaya......

    bahut sateek aalekh...........

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  10. आज सब कुछ बिक रहा है इसलिए तो सारा देश भ्रष्ट होता जा रहा है हर कोई सिर्फ बोली लगाने में तुला है किसी को किसी के एहसास की थोड़ी भी फ़िक्र नहीं संवेदनाएं मरती जा रही एहसास का नामों निशान नहीं है बस खरीद - फरोक्त का धंदा सरे आम चल रहा न किसी का डर न ही किसी की परवाह | किसका पेट भर रहा है या कौन भूखा है ? इससे किसी को कोई मतलब नहीं बस कौन कितनी उचाईयों को छु सकता है बस यही है , फिर उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े उसे मंजूर है |
    सार्थक लेख बहुत सुन्दर |

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  11. संजय जी सच कहा है आपने. आम आदमी का कोई खरीदार नहीं है. आदमी मर भी जाए तो क्या. भारत की आबादी तो १२३ करोड़ है क्या फर्क पड़ेगा.

    आपतो शेअर मार्केट के खिलाड़ी है वहाँ तो एक खबर से अरबों के वारे न्यारे हो जाते है.

    अच्छा विषय उठाया है.

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