Wednesday, July 3, 2013

क्षति ............. >>>>> गार्गी की कलम से

पेड़ पर चली कुल्हाड़ी 
पैरों पर पड़ गई 
खुशियाँ मातम में 
वदल गई 
गलती तो हुई 
और उसकी 
सजा भी मिली 
जो भावात्मक " क्षति " हुई 
उसकी पूर्ती क्या 
संभव है .....?
नहीं !
अगर हम 
अब भी ना चेते 
तो शायद 
संभलने का 
दूसरा मौका ना मिले ......

( गार्गी की कलम से )

धन्यवाद  

8 comments:

  1. मन का घाव कहाँ जाता है?

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04/07/2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  3. वाह , बहुत खूब ,सोचने को मजबूर करती हुई पंक्तिया
    शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_3.html

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  4. अगर हम
    अब भी ना चेते
    तो शायद
    संभलने का
    दूसरा मौका ना मिले ....
    ......गहन भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ...आभार

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  5. सम्वेदंशील मन की छुपी हुइ गहरी वेदना झलक रही है इस रचना मे .......

    बहुत सुंदर रचना ...!!

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  6. बिल्कुल सही...कम शब्दों में बड़ी गहन बात कहती है ये कविता।।।

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