पेड़ पर चली कुल्हाड़ी
पैरों पर पड़ गई
खुशियाँ मातम में
वदल गई
गलती तो हुई
और उसकी
सजा भी मिली
जो भावात्मक " क्षति " हुई
उसकी पूर्ती क्या
संभव है .....?
नहीं !
अगर हम
अब भी ना चेते
तो शायद
संभलने का
दूसरा मौका ना मिले ......
( गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
मन का घाव कहाँ जाता है?
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04/07/2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
सुंदर सृजन,बहुत उम्दा सार्थक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
वाह , बहुत खूब ,सोचने को मजबूर करती हुई पंक्तिया
ReplyDeleteशुभकामनाये
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_3.html
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
अगर हम
ReplyDeleteअब भी ना चेते
तो शायद
संभलने का
दूसरा मौका ना मिले ....
......गहन भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्तुति ...आभार
सम्वेदंशील मन की छुपी हुइ गहरी वेदना झलक रही है इस रचना मे .......
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...!!
बिल्कुल सही...कम शब्दों में बड़ी गहन बात कहती है ये कविता।।।
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