Thursday, May 5, 2011

अब ना कहना की थोड़ा रुक जाते तो .... ...>>> संजय कुमार

काश अगर हम थोड़ा रुक जाते तो यह टेलीविजन और सस्ती मिल जाती, थोड़ा और रुक जाते तो शायद शादी के लिए लड़की और अच्छी मिल जाती ! अक्सर हम लोग इस तरह की बात अपने जीवन में कई बार अपनी रोज की दिनचर्या में कई बार अपनों के साथ अपने दोस्तों के बीच करते रहते हैं ! कभी कभी लगता है की हम शायद सही कह रहे हैं ! हमने शायद जल्दबाजी में आकर कोई चीज खरीद्ली या फिर किसी को खरीदते देख या फिर भेड़ चाल में शामिल होकर कोई निर्णय ले लिया हो और बाद में हम अपने किये पर पछता रहे हों ! किन्तु हम लोगों ने कभी इस बात पर गहराई से नहीं सोचा और बिना सोचे विचारे बोल देते हैं कि , थोड़ा रुक जाते तो ये हो जाता वो हो जाता ! बात ये सही है किन्तु उन लोगों के लिए जो किसी भी चीज या समय का महत्व नहीं जानते ! क्योंकि समय पर किया गया कोई भी कार्य कभी गलत नहीं होता ! क्योंकि हमारे द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय के लिए सिर्फ और सिर्फ हम जिम्मेदार होते हैं ! हर निर्णय को हम सोच समझकर लेते है और सोच समझकर लिए गए निर्णय पर कभी पछताना नहीं चाहिए ! क्योंकि निर्णय वक़्त की मांग पर निर्भर करता है ! जीवन में हर चीज के दो पहलू होते हैं ! पर थोडा सोचना होगा ! अगर हम सब वक़्त की मांग पर निर्णय लेने में थोडा रुक जाएँ , तो क्या होगा ? और क्या हो सकता था ? इसका अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते ! अगर हम अपने जीवन में थोडा रुक जाते तो कभी भी मंजिल हांसिल नहीं कर पाते ! थोडा रुक जाते तो शायद हम आज भी अंग्रेंजों के गुलाम होते ! थोडा रुक जाते तो कैसे करते एक सुनहरे भविष्य का निर्माण ! थोडा और रुक जाते तो कैसे देश का नाम हम विश्व में रोशन कर पाते ! नहीं कुछ भी नहीं होता अगर हम सब थोडा और रुक जाते ! थोड़ा रुक जाते तो कभी ना बनते इतिहास और ना बनते भविष्य ! हम जहाँ थे वहीँ रहते ! गुमनाम और दुनिया जहाँ से अनजान ! ना हमारी कोई पहचान होती और न हमारा कोई नाम ! अगर हम थोडा रुक जाएँ तो क्या होगा ? शायद हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते ! आज अगर हम थोडा रुक गए तो यह देश बिकने में जरा भी वक्त नहीं लगेगा , देश के गद्दार इस देश को बेच देंगे और हम बुत बने देखते रह जायेंगे ! थोडा रुक गए तो धर्म और मजहब के नाम पर हम लोगों को आपस में लड़ाने वाले जीत जायेंगे अगर रुक गए तो धर्म - मजहब की खाई और गहरी हो जाएगी ! इंसान , इंसानियत भूल जायेगा और हम खड़े होकर देखते रहेंगे अपनों की बर्बादी अपने संस्कारों का पतन ! थोडा रुक गए तो पूरी तरह ख़त्म हो जायेंगे बचे कुचे इंसानी रिश्ते जो पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में गम होते जा रहे हैं ! थोडा रुक गए तो कभी हासिल नहीं कर सकेंगे वो बुलंदी जिसकी चाह में आज हम सब जी रहे हैं ! थोड़ा रुक गए तो भ्रष्टाचारी , घोटालेबाज , बेईमान एक दिन हमारा सौदा कर जायेंगे और हम कुछ ना कर पायेंगे !


जी नहीं अब वक्त नहीं थोडा और रुकने का ! अब वक्त आ गया है हिम्मत से आगे बढ़ने का और अपनी मंजिल हांसिल करने का ! अब वक़्त आगया है जागने का ना की थोड़ा रुकने का ! तो अब जाग जाओ और आगे बढ़कर इस देश को बचाओ !


अब ना कहना की थोड़ा रुक जाते तो ............. क्योंकि हमने अपना सारा जीवन निकाल दिया थोड़ा और थोड़ा और के चक्कर में ! ( रुक जाना नहीं तू कहीं हार के ) ( एक छोटी सी बात )


धन्यवाद

10 comments:

  1. बड़ा अच्‍छा लिखा है। ज्‍यादा सोच-समझकर कार्य करने के चक्‍कर में काम ही नहीं होता। दुनिया जैसे ठहर सी जाती है। इसलिए जो करना है तत्‍क्षण कर डालों। मैं पूर्णतया सहमत।

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  2. जब रुकना चाहिये तब तो रुकते नहीं हैं हम। जब चलना होता है तो पसरे पड़े रहते हैं, न जाने कब सुधरेंगे हम।

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  3. थोडा रुक जाते तो शायद हम आज भी अंग्रेंजों के गुलाम होते ! थोडा रुक जाते तो कैसे करते एक सुनहरे भविष्य का निर्माण !
    Bahut sahee kaha!

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  4. बहुत उम्दा लेखन.....सही जागृत करता.

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  5. बेहद प्रभावशाली और तथ्यपरक रचना। आभार।

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  6. रुक जाना नहीं तू कहीं हार के.....
    अदम्य जिजीविषा....
    सारगर्भित पोस्ट
    बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन.

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  7. वाकई ...!
    अच्छा लेख, आभार आपका !

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  8. कमाल है जी... हम तो थोड़ा-२ करके बहुत रुक गए.. :)

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  9. बड़ा अच्‍छा लिखा है...वाकई

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  10. बहुत बढ़िया जाग्रत करने वाली प्रस्तुति .....
    जागो इंडिया जागो!!

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