Saturday, March 12, 2011

महाप्रलय के जिम्मेदार हम ! ... ( एक विनम्र निवेदन प्रक्रति का ) ......>>> संजय कुमार

आज पूरा विश्व जिस महाप्रलय से डर रहा है , उसका जिम्मेदार और कोई नहीं हम मानव ही हैं ! आज हम लोगों ने ही इस महाप्रलय को निमंत्रण दिया है ! आज जो जापान के साथ हुआ है , और उसके साथ उसके समीपवर्ती देशों में भी हाई अलर्ट कर दिया गया है ! क्योंकि अब यह खतरा उन देशों पर भी मंडरा रहा है ! क्या आप जानते हैं ? इस महाप्रलय का कारण क्या है ? शायद आप जानते हैं ! इसका कारण, क्योंकि कारण हम स्वयं ही हैं ! जब कारण हम ही हैं तो प्रक्रति को दोष क्यों दें ! आज हमने अपने आपको इतना व्यस्त कर लिया है कि, हम अपने बारे में सोचने के अलावा शायद कुछ और नहीं कर पाते , यदि करते तो शायद इस तरह के महाप्रलय से बच जाते हैं ! प्राक्रतिक महाप्रलय की जिम्मेदार प्रक्रति नहीं हम इंसान हैं ! आज हम लोग जिस तरह प्रक्रति से छेड़छाड़ कर रहे हैं ! या यूँ कहें उसके साथ बलात्कार कर रहे हैं ! उसको कहीं का नहीं छोड़ रहे हैं ! प्रक्रति ना तो अपने आप को बचा पा रही है और ना रोक पा रही है ! समय समय पर वो हम सबको चेतावनी जरुर दे रही है ! उसकी चेतावनी अगर जापान जैसी है तो उसका प्रकोप कितना भयंकर होगा ! उसके ख्याल से ही इंसानी रूह काँप जाती है ! देश को आधुनिक बनाने के चक्कर में जिस तरह हमने बड़े - बड़े जंगलों का सफाया किया है , उसी का नतीजा है ये सब , वृक्षारोपण के नाम पर होता भ्रष्टाचार भी इसकी एक बड़ी बजह है ! सड़क निर्माण और हजारों किलोमीटर लम्बे हाइवे बनाने में किस तरह लाखों-करोड़ों पेड़ों को काट दिया जाता है, या उनको काट दिया गया है , उनकी भरपाई हम आज तक नहीं कर पाए और शायद कभी कर भी नहीं पायेंगे ! हम सब अच्छी सड़क मार्गों का आनंद लेते हैं वो भी प्रक्रति का दोहन करते हुए ! बड़े - बड़े खेत -खलिहानों और बड़े - बड़े पेड़ों को साफ़ कर भू-माफिया अपनी जेबें भर रहे हैं ! बड़े -बड़े प्राक्रतिक मैदानों को समतल कर शोपिंग माल बनाये जा रहे हैं ! हमारे देश में वृक्षारोपण की कई मुहीम चलायी जाती हैं ! लेकिन कितने सफल होते हैं वृक्षारोपण मुहीम में ! आज जहाँ हर दिन हर पल भ्रष्टाचार हो रहा है ! वहां प्रक्रति के साथ भी हम धोखा कर रहे हैं ! हम लोगों ने हजारों - लाखों पेड़ लगाए तो हैं लेकिन कहाँ आप जानते ही होंगे सिर्फ कागजों में , हम भले ही पेड़ कागजों में लगायें , लेकिन प्रक्रति अपना हिसाब सबके समक्ष लेगी !
मैं आपकी प्रक्रति आपसे विनम्र निवेदन करी हूँ !
अगर मैं रूठ गई तो जानते हैं आप क्या होगा इस ब्रह्माण्ड का ? कुछ नहीं वचेगा इस प्रथ्वी पर हर जगह सिर्फ तवाही और तवाही ! इसलिए मैं कहती हूँ मुझे मजबूर मत करो महाप्रलय लाने के लिए ! बल्कि मुझे बचाने का पूरा प्रयत्न करो ! मैं पर्यावरण और प्रकृति हूँ ! विश्व की इस ब्रह्माण्ड की सबसे कीमती धरोहर ! जैसे जैसे इन्सान आधुनिक होता जा रहा है , वैसे वैसे मेरी सुन्दरता कम होती जा रही है! आज इन्सान ने अपने आप को इतना व्यस्त कर लिया है की उसका ध्यान अब मेरी और से पूरी तरह हट गया है ! वह मुझे भूलता जा रहा है ! मैंने तो हमेशा ही इस कायनात को अपना सर्वश्व दिया है ! और इंसानों ने मुझे क्या दिया ? जिसे देखो मेरा दोहन कर रहा है ! कभी पैसे के लिए तो कभी अपने शौक के लिए , फिर भी मैं कुछ नहीं कहती ! शायद कभी तो आप मेरे बारे में सोचेंगे ! मैंने तो इंसानों को इनको इतने उपहार दिए हैं , जिसका ऋण ये मानव कभी नहीं उतार सकता ! पर यह सब मुझे बर्बाद किये जा रहे हैं ! आज मैं इस मानव जाति से नाराज हूँ ! अगर आप लोग मेरी सलामती के लिए आगे नहीं आये तो मैं जल्द ही आप सब से रूठ जाऊंगी ! अगर मैं आप सब से रूठ गई तो क्या होगा इस ब्रह्माण्ड का इसका शायद आप लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते ? कुछ करो मेरे लिए ! मैं चाहती हूँ अब आप मेरे लिए थोडा सा सहयोग और थोडा श्रमदान करें ! मैं चाहती हूँ आप सब अपने जीवन में कम से कम एक वृक्ष जरूर लगायें ! अगर सारे इन्सान सिर्फ एक एक वृक्ष ही लगायेंगे तो मैं आपसे वादा करती हूँ, मैं सब कुछ पहले जैसा कर दूँगी ! आज तो मेरा स्वरुप ही बदल गया है ! जिससे मैं काफी दुखी हूँ ! मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है , कृपया मुझे वचाने आप सब लोग आगे आये और सहयोग प्रदान करें ! मैं आप सभी का धन्यवाद करती हूँ और आशा करती हूँ , की आप मुझे अपने से रूठने नहीं देंगे !

आपकी प्रकृति और पर्यावरण

धन्यवाद

11 comments:

  1. जब आदमी यह भूल जाता है कि वह अपनी मर्जी से नहीं बल्कि इस कायनात के मालिक की मर्जी से पैदा हुआ है और उसे वह अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए जिम्मेदार है तो उसकी इच्छाएं असंतुलित हो जाती हैं । अब वह जैसे जैसे अपनी ये असंतुलित इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करता है तो उसका जीवन भी असंतुलित होने लगता है और जब सारी दुनिया के अधिकतर लोगों का कर्म असंतुलित हो जाता है तो जिन चीजों को भी वे इस्तेमाल करते हैं , उनमें भी वे हद से गुजर जाते हैं । इस तरह चीजों में और पर्यावरण में भी असंतुलन पैदा हो जाता है जो कि तब तक दूर नहीं हो सकता जब तक कि मानव जाति अपने मालिक को अपना हाकिम न माने और उसके खिलाफ अपनी बग़ावत के अमल न छोड़ दे ।
    दयालु पालनहार अपनी वाणी क़ुरआन में यही बताता है और सुरक्षा देने के लिए अपने संरक्षण में बुलाता है ।
    आईये , प्रभु के प्रति समर्पण कीजिए , अपने कल्याण के लिए।

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  2. आपकी यह पोस्ट बहुत महत्वपूर्ण है....
    निश्चित रूप से प्रकृति का निवेदन सुनना ही होगा....अन्यथा फिर सुनने- सुनाने को कुछ नहीं रहेगा...

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  3. बहुत ही सुन्दर आलेख , सचमुच आज धरती चिल्ला रही हैं

    खुद के लिए मुझे ना संवारो
    वेवजह मेरी तस्वीर न बिगाड़ो.

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  4. प्रकृति के संकेतों को तो सुनना ही होगा।

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  5. निस्ज्चित ही प्रकृति का जिस तरह दोहन हो रहा है वो पूरे ब्राह्मन्ड के लिये खतरा है। सार्थक सन्देश देती पोस्ट। शुभकामनायें।

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  6. प्राक्रतिक महाप्रलय की जिम्मेदार प्रक्रति नहीं हम इंसान हैं .....सही कहा आपने।
    बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने ------- बधाई

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  7. sach kaha hami jimmedaar hai iske ,saarthak lekh .

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  8. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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