सिखलाया गया था हमें , कि लड़ना है बुरी बात ,
माना हमने भी कि हाँ लड़ना है बुरी बात
पर ? जीना है अगर , तो है यही अच्छी बात
जूझने की अगर तुममें हो अधिक से अधिक क्षमता
तो है यही सबसे अच्छी बात
जिंदगी आसान नहीं इतनी अब
जितनी हुआ करती थी कभी
अब वो वक़्त नहीं
सूत्र भी वदल गए हैं ! वक़्त और हालात के साथ
बुरा था कल जो ,
आज बही अच्छा है ,
अपने थे कल सब यहाँ ,
खुद ही खुद के नहीं आज हम यहाँ ,
जूझ नहीं पाते अगर हम , तो खुद को मिटा लेते
रहते हैं अगर हम शांत
तो , लोग हमें रौन्धते हुए कुचल कर चले जाते हैं
दिए थे कुरुक्षेत्र में अर्जुन को , जो उपदेश श्रीकृष्ण ने
अपनाना पढ़ते हैं अब उन्हें जिंदगी के कुरुक्षेत्र में !
लागू होता अगर एक ही सूत्र
हर वक़्त हर जगह , तो --
अवतरित ना होते राम सतयुग के
द्वापर युग में कृष्ण रूप में
इसलिए खुद के आचरण पर
है अगर आंतरिक संतुष्टि तुम्हें
तो इस बात को जाने देना
कि लोग हैं क्या कहते !
( प्रिये पत्नी की कलम से )
धन्यवाद
हर एक सूत्र जीवनदायी
ReplyDeleteबहुत खूब ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteजीवन अब जीना हो तो ये ही सूत्र अपनाने होंगे.....बहुत खूब गार्गी...
ReplyDeleteऔर आपका आभार..."प्रिय पत्नी की कलम" के लिए..
अति सुन्दर !
ReplyDeleteजीवनोपयोगी सार्थक रचना
बहुत लाजवाब कविता और जीवन का सच
ReplyDeleteKavita nihsandeh achchhi hai lekin saari kavitaayen ek jaisa udaas vaatavaran bana rahee hain.. ekrsta aa rahee hai kahin.. badlaav ki aavashyakta hai. Naye vishay chuno Rani beta...
ReplyDeleteBadhai Rani-Sanjay ji ko
इसलिए खुद के आचरण पर
ReplyDeleteहै अगर आंतरिक संतुष्टि तुम्हें
तो इस बात को जाने देना
कि लोग हैं क्या कहते ! ......
सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत मार्मिक रचना , बधाई.
बहुत सुंदर रचना, बधाई।
ReplyDeleteअपनाना पढ़ते हैं अब उन्हें जिंदगी के कुरुक्षेत्र में !....
ReplyDeleteइस सुंदर कविता के लिए बधाई।
संजय कुमार चौरसिया जी! आपकी रचना प्रेरक है। मर्म को छूती है.... बधाई स्वीकारें। आज के समय में संर्घष भी जरूरी है। कुछ लोग शक्ति के बल पर दूसरों को रौंद कर आगे बढ़ने में विश्वास करते हैं। मानवीय मूल्यों की वे परवाह नहीं करते हैं। आदिम युग में यह व्यवस्था समाज में कायम थी। एक जंगली को उससे जबरदस्त जंगली प्रताणित करता है तो वह न्याय और मूल्यों की दुहाई देकर मदद माँगने के लिए बचाओ .......बचाओ ........ की गुहार लगाता है। हमारे देश का इतिहास इस प्रकार की घटनाओं से भरा पड़ा हैं। शोषण और जंगलीपन के पुराने हथकंडे आज भी अपनाए जाते हैं। अत: सभ्य समाज के निर्माण हेतु अव्यस्था फैलाने वालों के खिलाफ लामबंद होने की आवश्यकता है।
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"दूसरों से वही व्यवहार करो जो अपने लिए दूसरों से चाहते हो।"
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
hame hamesha good work par hi dhyan dena chahiye.log kuchh nahi kahenge.
ReplyDeleteलोग हमें रौन्धते हुए कुचल कर चले जाते हैं
ReplyDeleteदिए थे कुरुक्षेत्र में अर्जुन को , जो उपदेश श्रीकृष्ण ने
अपनाना पढ़ते हैं अब उन्हें जिंदगी के कुरुक्षेत्र में !
लागू होता अगर एक ही सूत्र
हर वक़्त हर जगह ,
.......सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत मार्मिक रचना
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDelete........माफ़ी चाहता हूँ