आज हम सब जिस युग में जी रहे हैं उस युग को आधुनिक युग कहते हैं ! भागमभाग भरी जिंदगी , चारों और शोरगुल , चौबीसों घंटे जागने बाला इंसान , अपनों से दूर , अपनेपन से दूर , ना परिवार का साथ ना बच्चों के सिर पर हाँथ ! अगर कुछ है तो काम का बोझ , अशांत मन और सब कुछ अस्त-व्यस्त ! आज हम सब वक़्त के साथ - साथ चल रहे हैं या साथ चलना चाहते हैं ! अच्छी बात है क्योंकि वक़्त गया सो सब गया ! जो वक़्त के साथ नहीं चल रहे हैं उनकी दुनिया आम इंसानों से थोडा अलग - थलग होती है ! अगर इन लोगों ने वक़्त के साथ चलना नहीं सीखा तो वक़्त की मार सब कुछ अपने आप सिखा देगी ! वक़्त के साथ साथ चलते -चलते आज हम इतना आगे निकल आये हैं , कि ठहर कर लगता है जैसे सब कुछ पीछे छुट गया हो ! जब हम सब आधुनिक हो गए हैं, तो आधुनिकता का अच्छा और बुरा परिणाम भी हम लोगों को भुगतना होगा ! इस आधुनिकता के जितने फायदे हैं उतने ही नुक्सान ! आधुनिकता से देश एवं समाज जितना प्रगति कर रहा है ! विश्व पटल पर हमारा देश अपनी तरक्की का परचम लहरा रहा है ! चारों तरफ खुशनुमा माहौल ! सब कुछ इंसान के कड़े परिश्रम का फल ! इस तरक्की में इंसान अपना असली जीवन जीना भूल गया , और वो जीवन है चैन और सुकून , खुशियों भरे पल का ! सुकून इंसान के जीवन का वह पल है जिसके के लिए इंसान अपनी पूरी जिंदगी निकाल देता है ! फिर भी इन्सान पूरी उम्र तरसता रहता हैं बस उस एक पल के सुकून के लिए जो सुकून होता है सिर्फ क्षणिक भर का और कुछ पलों का ! और यह पल इंसान के जीवन में कब आते हैं और कब यह पल निकल जाते हैं इसका अंदाजा तो इंसान कभी लगा ही नहीं पाता ! जब इंसान हर तरफ से निराश और हताश जो जाता है तब फिर तैयार हो जाता है वह सब कुछ करने के लिए जो उसे एक पल का ही सही पर सुकून अवश्य दे ! इंसान को सुकून कब मिलता है ? क्या कोई है जिसने इस दुनिया में सुकून पाया हो ! मैं जब ढूँढने निकला तो मुझे एक भी नहीं मिला ! आज की भागदौड़ में हम अपने जीवन में कितना भी कर लें , कुछ भी कर लें पर सुकून तो जैसे हमसे इतनी दूर है कि लगता है हमारा पूरा जीवन ही निकल जायेगा ! इस एक पल के सुकून को हांसिल करने में !
" जीवन की आपाधापी " में इंसान आज इतना उलझा हुआ हैं जहाँ दिन प्रतिदिन बढ़ती समस्याएं , उस पर मंहगाई की मार पारिवारिक वातावरण में अपनेपन का अभाव ! आस -पास का प्रदूषित माहौल सब कुछ इंसान से उसकी खुशियाँ छीन रहा है ! जीवन में ढेर सारी उलझनें जिनसे निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है ! आज इंसान ने अपने आप को इतना व्यस्त कर लिया है कि, वह सुकून और ख़ुशी को महसूस ही नहीं कर पाता और जब महसूस करने का वक़्त आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ! जब इंसान अच्छे पलों को फायदा नहीं उठाता उन्हें खुशनुमा नहीं बनाता तब तक उसकी खुशियाँ उससे बहुत दूर हैं ! जब इंसान अपनी और परिवार की खुशियों में शामिल नहीं होता तब बह वह धीरे - धीरे दूर होता जाता है , अपनों से, अपने समाज से ! जब बह अपना ध्यान तक नहीं रखता फिर किसी और का का ध्यान कैसे रखेगा ! इंसान आज लगा हुआ है मशीनों कि तरह काम करने के लिए बह भी कभी ना रुकने बाले घोड़ों कि तरह !जब इंसान कभी ना खत्म होने बाले जीवन के कार्यों में जुट जाता है तो खुशियाँ और सुकून उससे कोसों दूर हो जाते हैं ! आज इन्सान ने अपनी जरूरतें इतनी पैदा कर ली हैं जिन्हें पूरा करते करते इंसान पर बुढ़ापा तक आ जाता है फिर भी जरूरतें कभी पूरी नहीं होती अपितु जरूरतें समय के साथ- साथ और बढ़ती जाती हैं ! एक समय था जब इंसान अपने जीवन में सुख और सुकून का अनुभव करता था ! तब इंसान आज की तरह आधुनिक नहीं था और ना ही उसकी जरूरतें ज्यादा थी ! उस वक़्त इंसान को चाहिए था रोटी -कपडा -मकान जो उसके पास होता भी था ! क्योंकि उस वक़्त इंसान थोड़े में ही सब्र कर लेता था ! उसका सबसे बड़ा हथियार सब्र था जो उसे हमेशा सुकून और सुख का अनुभव कराता था फिर वह पल, पल भर का ही क्यों ना हो ! तभी तो आज के कई बुजुर्ग यह कहते हैं कि, समय तो हमारा था जिसमें इंसान के पास सब कुछ था जो हमें चैन और सुकून देता था ! जितनी चादर उतना ही पैर फैलाता था और उठाता था जीवन में सुख और सुकून का आनंद ! लेकिन आज के चकाचौंध और भागमभाग माहौल में उसे यह सब कुछ देखने को नहीं मिलता !अगर जीवन में पाना है सुकून और सुख की अनुभूति ! तो जुड़े रहिये अपने परिवार के साथ, जुड़े रहिये अपने समाज के साथ अपने मित्रों के साथ समझें उन्हें और उनके महत्व को ! ना दौड़ें अंधों की तरह आधुनिकता और सब कुछ पाने के लिए ! आज इन्सान के शौक इतने हो गए हैं की जीवन भर वह उन्हें पूरा नहीं कर सकता !
इंसानी इक्षाएं तो अन्नंत हैं ..........जिनका कोई अंत नहीं ............ और सुकून होता है पल भर का ........तो उस पल को महसूस करें.............जीवन का आनंद उठायें ..............
धन्यवाद
मैं तो जुड़ा हूं जी अपनी परिवार से, आप अपनी कहो...सुन्दर आलेख, प्रेरक भी।
ReplyDeleteहै वक़्त बहुत थोडा अरमान बहुत जयादा हैं .....बस यहाँ इंसान भूल कर जाता है ...बहुत विचारणीय लेख ...
ReplyDeleteबहुत चिन्तनीय स्थिति है, चिन्तन करना होगा।
ReplyDeleteसुन्दर विचारणीय आलेख,
ReplyDeleteइंसानी इक्षाएं तो अन्नंत हैं. पसंद आया आप का यह लेख
ReplyDeleteबहुत चिन्तनीय .सुन्दर आलेख
ReplyDeleteइंसानी इक्षाएं तो अन्नंत हैं ..जिनका कोई अंत नहीं ... और सुकून होता है पल भर का ..तो उस पल को महसूस करें....जीवन का आनंद उठायें .....
ReplyDeleteसही कहा ...ख़ुशी के लिए अब ये छोटे छोटे पल ही ढूँढने होंगे .....
जुड़े रहिये अपने परिवार के साथ, जुड़े रहिये अपने समाज के साथ अपने मित्रों के साथ समझें उन्हें और उनके महत्व को ! ....
ReplyDeleteसकारात्मक , अच्छी प्रस्तुति।