जो व्रत धरा वो व्यर्थ गया
पवित्र रहना सजा हो गया
जो तुमने सिखलाया था " माँ " मुझको
वो चरित्र भीड़ को गवारा ना हुआ
क्योंकि है, यह ज़माना कलियुग का
सतयुग कब का चला गया !
" अंत भला सो सब भला "
यह मुहावरा " अपवाद " हो चला
क्षणिक सुख की समझदारी --
जिसने यह समझ लिया
बही जमाने को भला लगा !
पर मेरा धीर अब टूट रहा
क्यों ? तुमने " माँ " मुझमें ये रमा दिया
कि,
" इंसान बही भाये जिसे सिर्फ प्रभु का होना "
( प्रिये पत्नी गार्गी चौरसिया की कलम से )
धन्यवाद
पवित्र रहना सजा हो गया
जो तुमने सिखलाया था " माँ " मुझको
वो चरित्र भीड़ को गवारा ना हुआ
क्योंकि है, यह ज़माना कलियुग का
सतयुग कब का चला गया !
" अंत भला सो सब भला "
यह मुहावरा " अपवाद " हो चला
क्षणिक सुख की समझदारी --
जिसने यह समझ लिया
बही जमाने को भला लगा !
पर मेरा धीर अब टूट रहा
क्यों ? तुमने " माँ " मुझमें ये रमा दिया
कि,
" इंसान बही भाये जिसे सिर्फ प्रभु का होना "
( प्रिये पत्नी गार्गी चौरसिया की कलम से )
धन्यवाद
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
क्योंकि है, यह ज़माना कलियुग का
ReplyDeleteसतयुग कब का चला गया !
......बढ़िया लेखन पर भाभी जी को बधाई
बहुत अच्छी रचना, न जाने कितने व्यवधान तो आते हैं, पर अंत भला तो सब भला।
ReplyDeleteअंत भला तो सब भला। बहुत सुन्दर प्रेरणा देती हुई रचना|
ReplyDeleteसंजय जी
ReplyDeleteजीवन के प्रत्येक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए अपने भाव को सामने लाना ...और एक प्रेरक कविता प्रस्तुत करने के लिए आपको हार्दिक बधाई
बहुत ही बढ़िया रचना
ReplyDeletepoori kavita ek sundar abhivyakti hai par " इंसान बही धन्यवाद प्रभु का होना " se kya taatprya hai.. nahin samjha.
ReplyDelete:(
badhaai Gargi-Sanjay ji
भाई साहब,
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को पढ़कर मुझे बहुत खुसी मिली.
आप शेर हो तो वो शेरनी से कम नहीं.. बहुत सुन्दर रचना
पति और पत्नी की राह अगर एक हो तो मंजिल की क्या मजाल जो मिलने मुस्किल करे....
खुशियों से भरी आदर्श हैप्पी फॅमिली है आपकी..
मेरी और से उन्हें चरण वंदन ...
कृष्णा
अपने अन्दर झाँकने के लिए प्रेरित करती कविता लाजवाब है
ReplyDeletelajabab rachna...
ReplyDeletemaa shardey aapki kalam me takat de..:)
"जो व्रत धरा वो व्यर्थ गया "- रचनाकार के आहत मन को यहाँ महसूसा जा सकता है . मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुन्दर रचना.....
ReplyDelete