Sunday, February 6, 2011

प्रभु का होना ....>>>> संजय कुमार

जो व्रत धरा वो व्यर्थ गया

पवित्र रहना सजा हो गया

जो तुमने सिखलाया था " माँ " मुझको

वो चरित्र भीड़ को गवारा ना हुआ

क्योंकि है, यह ज़माना कलियुग का

सतयुग कब का चला गया !

" अंत भला सो सब भला "

यह मुहावरा " अपवाद " हो चला

क्षणिक सुख की समझदारी --

जिसने यह समझ लिया

बही जमाने को भला लगा !

पर मेरा धीर अब टूट रहा

क्यों ? तुमने " माँ " मुझमें ये रमा दिया

कि,

" इंसान बही भाये जिसे सिर्फ  प्रभु का होना "




( प्रिये पत्नी गार्गी चौरसिया की कलम से )

धन्यवाद

12 comments:

  1. बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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  2. क्योंकि है, यह ज़माना कलियुग का
    सतयुग कब का चला गया !
    ......बढ़िया लेखन पर भाभी जी को बधाई

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  3. बहुत अच्छी रचना, न जाने कितने व्यवधान तो आते हैं, पर अंत भला तो सब भला।

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  4. अंत भला तो सब भला। बहुत सुन्दर प्रेरणा देती हुई रचना|

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  5. संजय जी
    जीवन के प्रत्येक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए अपने भाव को सामने लाना ...और एक प्रेरक कविता प्रस्तुत करने के लिए आपको हार्दिक बधाई

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  6. बहुत ही बढ़िया रचना

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  7. poori kavita ek sundar abhivyakti hai par " इंसान बही धन्यवाद प्रभु का होना " se kya taatprya hai.. nahin samjha.
    :(
    badhaai Gargi-Sanjay ji

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  8. भाई साहब,
    आपकी इस पोस्ट को पढ़कर मुझे बहुत खुसी मिली.
    आप शेर हो तो वो शेरनी से कम नहीं.. बहुत सुन्दर रचना
    पति और पत्नी की राह अगर एक हो तो मंजिल की क्या मजाल जो मिलने मुस्किल करे....
    खुशियों से भरी आदर्श हैप्पी फॅमिली है आपकी..
    मेरी और से उन्हें चरण वंदन ...

    कृष्णा

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  9. अपने अन्दर झाँकने के लिए प्रेरित करती कविता लाजवाब है

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  10. "जो व्रत धरा वो व्यर्थ गया "- रचनाकार के आहत मन को यहाँ महसूसा जा सकता है . मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान

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  11. बहुत अच्छी सुन्दर रचना.....

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