Tuesday, March 1, 2011

क्यों करते हैं जिस्मफरोशी का धंधा ? क्या मजबूरी यही कहती है ? या फिर .........>>> संजय कुमार

अब आये दिन हमारे देश के अखबार , टेलीविजन और न्यूज़ पेपर जिस्मफरोशी करने बालों के कारनामों से भरे रहते हैं ! अब आये दिन इस तरह की ब्रेकिंग न्यूज़ लगभग हर शहर से प्रतिदिन आती है ! अब कल ही की बात ले लीजिये इंदौर और भोपाल में एक साथ दो ब्यूटी-पार्लर पर छापा मारकर पुलिस ने जिस्मफरोशी का धंधा करते हुए नौजवान लड़के - लड़कियों को रंगे हांथों पकड़ा ! इस तरह की घटनाएं अब आम हो गयी हैं ! कहीं - कहीं ये सब खुले में हो रहा है तो कहीं पर चोरी - चोरी ! कुछ मजबूरी बस तो कुछ जानबूझकर इस धंधे में लगा हुआ हैं ! इस घिनौने काम से महानगर ही नहीं अपितु छोटे - छोटे शहरों और गाँवों तक में इस गंदगी ने अपने पैर पसार रखे हैं ! हर बार की तरह पकड़ी गयी लड़कियों का यही कहना " में मजबूर थी " मुझे धोखे से फसाया गया या फिर मुझे पैसों की जरुरत थी और गलत संगत में पड़कर, वगैरह - वगैरह ........ आज जिसे देखो अपनी - अपनी मजबूरी बताता है ! क्या मजबूरी में इंसान के पास सिर्फ यही एक रास्ता है ? इसके अलावा क्या सारे रस्ते बंद हो गए हैं ? हमारे यहाँ हर दिन कोई ना कोई बड़ी सख्सियत सेक्स स्कैंडल में पकड़ी जा रही है ! फिर चाहे धर्म की बड़ी - बड़ी बातें करने बाला कोई साधू-संत हो , देश की राजनीति में बैठा कोई बड़ा नेता या मंत्री हो , ऊंचे पदों पर बैठे आला-अधिकारी या कर्मचारी या फिर शहर का कोई बड़ा व्यापारी , आज हर कोई कहीं ना कहीं इस चमड़ी के व्यापार में बहुत अन्दर तक घुसा हुआ है ! ऐसा नहीं है कि सिर्फ गरीब घरों की लड़कियां ही इस काम में लगी हुई हैं , बल्कि बड़े - बड़े घरों की लड़कियां भी इस काम को करने से नहीं चूकती और आये दिन सुर्ख़ियों में बनी रहती हैं ! बड़े - बड़े कोलेज में पड़ने बाली लड़कियां , एम् बी ऐ छात्राएं एयर होस्टेस और भी लम्बी लिस्ट है ऐसी लड़कियों की जो ऊंचे घरानों और बड़े - बड़े व्यापारियों के खानदान और बड़े - बड़े अफसरों के घरों से से ताल्लुक रखती हैं ! अब इन लड़कियों की क्या मजबूरी हो सकती है ? रूपए - पैसे से संपन्न हर चीज का ऐशोआराम फिर भी जिस्मफरोशी ऐसा क्यों ? ये मजबूरी है या अय्याशी ! शायद इन लड़कियों के लिए शौक या मजा , क्योंकि मजबूरी तो उनकी होती है जिनके पास अपना तन ढंकने के लिए कपडा , खाने के लिए रोटी और सिर छुपाने के लिए एक छत तक नहीं होती ! इन लोगों में भी हर कोई इस तरह जिस्मफरोशी के धंधे में नहीं उतरता ! कई ऐसे परिवार हैं जहाँ स्थति बहुत खराब है और उन घरों का बोझ उस घर की लड़कियों के ऊपर है फिर भी वो किसी गलत तरीके से काम करके अपना और अपने परिवार का पेट नहीं भरती, कड़ी मेहनत कर ईमानदारी के साथ काम कर अपना जीबन यापन करती हैं ! कुछ लड़कियों ने जिस्मफरोशी को एक आसान तरीका बना लिया है ! माँ-बाप की आँखों में धुल झोंकना कभी ट्यूशन के बहाने तो कभी पार्टी के नाम पर ! यह बिलकुल सत्य है आज इस तरह बच्चे माँ-बाप के द्वारा दी गयी आजादी का गलत फायदा उठा रहे हैं ! कभी आधुनिक चकाचौंध के चक्कर में तो कभी गलत दोस्तों के चक्कर में फंसकर अपना जीवन तबाह कर रही हैं ! एक और देश में बारबालाओं और वैश्याओं को हम और हमारा सभ्य समाज घिनोनी द्रष्टि से देखता है ! लेकिन यह सब तो अपना पेट भरने के लिए यह सब करती हैं , इनकी तो मजबूरी होती है ! पर सभ्य समाज में रहने बाली युवतियां जो कर रहीं हैं , शायद इन्हें हम कुछ नहीं कह सकते , क्यों ? यह सब किसी रुतबे दार घर या समाज से सम्बन्ध रखती हैं ! फिर क्या अंतर रह जाता हैं उन वेश्याओं में और इन लड़कियों में ! जो शराफत का चोला पहनकर समाज और अपने परिवार की आँखों में धुल झोंक रहीं हैं ! और समाज को गन्दा कर रही हैं ! कुछ तो शर्म करो ! क्या पैसा कमाने का यही एक रास्ता बचा है ? आपके पास ............. इन सब के पीछे कौन जिम्मेदार है ? क्या इसकी नैतिक जिम्मेदारी माँ -बाप की है ? क्या संस्कारों की कमी ? कुछ हद तक है , क्योंकि आज हम अपने बच्चों की हर ख्वाहिश को जिस तरह पूरा करते हैं , और उन को पूरी तरह से आजाद भी कर देते हैं कुछ भी करने के लिए ! जो बच्चे अपने माँ -बाप से दूर रहते हैं उन बच्चों पर निगरानी रखना माँ -बाप की ही जिम्मेदारी है ! क्योंकि उनके साथ होने बाले हर अच्छे - बुरे परिणाम का फल एवं तकलीफ माँ -बाप को ही उठानी होती है !
आज के युवा तो देश का भविष्य हैं ! जब वर्तमान ही अन्धकार के दलदल में धंसा हुआ है तो फिर क्या होगा भविष्य ? नाम रौशन करें , बनें अखबारों की सुर्खियाँ लेकिन देश का नाम बढ़ाने के लिए ना की डुबाने के लिए !

धन्यवाद

18 comments:

  1. बहुत ही चिन्ताजनक स्थिती है। मगर इसमे केवल लडकियाँ नही हम सब और हमारे परिवार, संस्कारों का अभाव, आज का बाजारवाद ाउर इनके इज्जतदार खरीदार कहीं न कहीं सब दोशी हैं। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  2. कुछ तो मजबूरियाँ रही होगी...

    ReplyDelete
  3. मै निर्मला जी की बातों से सहमत हुॅ। समाजिक समस्या पर बेहतरीन आलेख।

    ReplyDelete
  4. THIS IS NOT A PROBLEM. THIS IS CANCER. WE HAVE TO FIGHT WITH THESE TIPS OF CANCER. ABHAY SETH

    ReplyDelete
  5. संजय कुमार जी ,

    आपने बहुत महत्वपूर्ण एवं ज्वलंत विषय पर अपना लेख लिखा है | वास्तव में यह सवाल चिंतनीय है | मात्र मजबूरी ही जिस्मफरोशी के धंधे में उतरने को बाध्य करती है , यह पूर्ण सत्य नहीं है | हाँ , मज़बूरी भी एक कारण है | आज के पारिवारिक माहौल , कुसंस्कार , समाज आदि-आदि बहुत से अन्य कारण भी हैं | इस पर ,व्यापक विचार विमर्श के उपरांत , समुचित सतत प्रयासों सेही काबू कर पाना संभव होगा |

    ReplyDelete
  6. संजय भाई
    यहाँ सबके अपने अपने तर्क हैं , पर वास्तविकता इसके बिलकुल उल्ट है ....समाज में इसके आलावा भी कई कार्य जिनकी तरफ हमारा रुख कभी जाता ही नहीं ..बहुत गंभीर समस्या पर विचारपूर्ण तरीके से प्रकाश डाला है आपने ...

    ReplyDelete
  7. हर समस्या का कोई न कोई हल निकल ही आता है...सही या गलत की समझ को विकसित करना हमारी अपनी जबाबदारी है...

    ReplyDelete
  8. आज का विषय काफी रोचक है और यह हमारे देश में घटने वाली रोज की समस्या है जो पकड़ में आ जाते हैं वो दीखते है और उस दोरान भी एसे काम चलते रहते हैं में इस बात से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ की अपनी इज्ज़त को दाव में लगा कर आप ये कहो की मेरी मज़बूरी थी इसलिए मेने एसा किया | इसे मज़बूरी नहीं इसे एक भूख का नाम दिया जाये तो ज्यादा अच्छा रहेगा जेसे एक शेर के मुहं में इन्सान का खून लग जाये तो वो नर भक्षी हो जाता है उसी तरह जब पैसे की भूख एसा करने से आसानी से पूरी होने लग जाये तो कोई मेहनत क्यु करना चाहेगा | न जाने एसी क्या मजबूरी आ जाती है की अपनी इज्ज़त को ही दाव पर लगा देते हैं | काश ये लोग समझ पते की एक बार गई इज्ज़त दुबारा वापस नहीं मिलती |
    सुन्दर पोस्ट |

    ReplyDelete
  9. सारगर्भित विचार..पर कुछ कहना मुश्किल है.

    ReplyDelete
  10. बहुत ही गंभीर समस्या पर विश्लेषणात्मक रूप से प्रकाश डाला है आपने. देखिए ये हमारे समाप्त होते समाज का ही एक पहलू है. रिश्ते समाप्त होते जा रहे हैं, बड़े बजुर्गों का माँ सम्मान नष्ट होता जा रहा है, और उसी तरह से नारी का आदर भी.

    मुझे तो यही लगता है की कहीं न कहीं नैतिक शिक्षा और आदर्शों पर बाजारवाद और भोगवादी मानसिकता पूर्ण रूप से हावी होती जा रही है.

    आपने ब्लॉग पर पधारकर मार्गदर्शन दिया, आपका शुक्रिया. आशा है की आप भविष्य में भी समय निकाल कर उत्साहवर्धन करेगे.

    ----------
    अरविन्द जांगिड,
    सीकर (राज.)

    ReplyDelete
  11. हालात सच में विचारणीय हैं..... सार्थक पोस्ट

    ReplyDelete
  12. कुछ व्यक्तिगत मज़बूरियाँ, कुछ सामाजिक व्यवस्था, संस्कार,वातावरण आदि ज़िम्मेदार हैं इस दुखद स्तिथि के लिए..विचारणीय आलेख..बहुत सार्थक पोस्ट

    ReplyDelete
  13. विचारणीय मुद्दा है...एक सोच बनानी ही होगी।

    ReplyDelete
  14. दरअसल यहां दो तरह की बात सामने आती है| कुछ लड़कियाँ मज़बूरी वश ऐसा कदम उठाती हैं और कुछ लड़कियाँ शौक से ऐसा करती हैं| संकट पुरे समाज का है| हम दोनों में से किसी स्थितियों को जायज़ नहीं कह सकते ना है यह स्वीकार करने के योग्य है| लेकिन दोनों परिस्थितियोंं में कारण अलग अलग हैं| जो लड़कियां मज़बूरी में ऐसा करती हैं उनके लिए तो यह असमानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार है जहाँ लड़कियाँ को सिर्फ़ भोगविलाश की वस्तु समझा जाता है| पुरुष प्रधान मानसिकता इसके लिए जिम्मेदार है| प्रशासनिक तंत्र इतना मजबूत नहीं है कि वो ऐसे कारखानों को बंद कर सके| और जो लड़कियाँ शौक से ऐसा करती हैं उनके लिए माँ बाप ज्यादा जिम्मेदार हैं क्योंकि अपने बच्चों पर उनका ध्यान नहीं है| पैसे और रुतबे के फेर में पागल हैं अपने बच्चों को नजरंदाज करते हैं|लेकिन इन सबके बीच नुकसान समाज का हो रहा है| इसपर तत्काल रोक लगाने की ज़रूरत है|

    ReplyDelete
  15. बहुत अच्छा लगा आपके विचार पढ़ के बहुत ही संदर है आपकी हर पोस्ट कभी अप्प मेरे ब्लॉग पे भी आईये
    दिनेश पारीक
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

    ReplyDelete
  16. aap ka kaha hua 16 aane sach hai, main aapke vicharon se prabhavit hun, thanks.

    ReplyDelete
  17. संजय जी
    गंभीर समस्या पर विचारपूर्ण तरीके से प्रकाश डाला है आपने

    ReplyDelete