कहा जाता है जब किसी देश में या किसी शहर में बाढ़ आती है तो वहां सब कुछ नष्ट हो जाता है ! ( जापान ) जान-माल का नुकसान , अर्थव्यवस्था को नुकसान , पुरानी सभ्यताओं और धरोहर को नुकसान , लगभग सब कुछ तहस नहस और तबाह और बर्बाद हो जाता है ! आज कल हमारे देश भारत में भी एक ऐसी ही बाढ़ आई हुई है , जिसने घर - घर में पहुँच कर बहुत कुछ तबाह और बर्बाद कर के रख दिया है ! भले ही इस बाढ़ से जान-माल का नुकसान ना हो रहा हो किन्तु इस बाढ़ से सभ्यता और संस्कारों को काफी क्षति पहुंची है ! हम बात कर रहे हैं पश्चिमी सभ्यता की , उसका रहन-सहन , खान-पान , आचार-विचार , सभ्यता -संस्कृति की ! आज हमारे जीवन पश्चिमी कल्चर का महत्त्व अपने संस्कारों , खान -पान, आचार -विचारों से कहीं ज्यादा है ! ( आज भी हम पर विदेशी भारी ) आज हमें अपने संस्कार, खान-पान बहुत ऊबाऊ और बेकार से लगने लगे हैं ! आज देश का हर बच्चा पैदा होते ही अंग्रेजी बोलना चाहता है फिर भले ही उसे हिंदी का पूर्ण ज्ञान ना हो , भले ही हिंदी हमारी अपनी राष्ट्रीय भाषा क्यों ना हो ! आज के बच्चे दूध की जगह कोल्ड -ड्रिंक्स ज्यादा मांगते हैं ! उनको सुबह - सुबह नाश्ते में मैगी , पाश्ता और पीजा चाहिए ! उनके लिए देशी व्यंजन पोहा , परांठे , लस्सी , अंकुरित भोजन तो जैसे घास- भूसा के समान है ! हमारी युवा पीढ़ी में तो विदेशी खान-पान , आचार-विचार , पहनावे का बड़ा क्रेज है ! सादा पैंट -शर्ट तो अब गुजरे जमाने की बात हो गयी है ! जींस -बीन्स , टाई-वाई आज का फैशन ( कुछ लोगों की जरुरत, तो कुछ मोर्डन दिखने के लिए ) बन गया है ! हमारे देश की लड़कियां फैशन में लड़कों से चार कदम आगे हैं ! सलवार - कुर्ता , साड़ी तो अब मजबूरी में पहनना पड़ते हैं ! वर्ना उनको तो वो कपडे ज्यादा पसंद होते हैं जो शरीर को ढंकते कम और शरीर को दिखाते ज्यादा हैं ! आज के फैशन में कपडे जितने कम , आप उतने ज्यादा मोर्डन और आधुनिक , हाँ अगर आपके कम कपडे इधर - उधर से फटे हुए हों तो आपके लुक में " सोने पे सुहागा " वाली बात हो जायेगी ! अरे भाई लड़कों को आकर्षित कैसे कर पायेंगे ! युवाओं की देर रात तक चलने वाली पार्टियाँ , शोर-शराबा , नाच-गाना , शराब , नशा , अय्याशी और बहुत कुछ जो आजकल की " रेव " पार्टियों में हो रहा है ! जिसके घातक परिणाम हमारे सामने कई रूपों ( जिस्मफरोशी ) में आ रहे हैं ! अब हमारे देश में एक नयी तरह की पार्टियों का आयोजन होने लगा है " Wife-swaping " अपनी - अपनी पत्नियों की अदला -बदली वो भी सिर्फ " Sex " की पूर्ती के लिए ! क्या यही है भारत की संस्कृति ? विदेशी पहनावे में एक बात और है यदि हमारे ६०-७० साल के दादा-दादी , नाना-नानी यदि धोती-कुरता छोड़ जींस पहनने लगें तो वो जवान और हेंडसम लगने लगते हैं ! अगर जींस फटा हुआ हो तो क्या कहने ! जींस पहनकर ६० साल का आदमी जवान और ४० साल का युवा लगने लगता है ! आज हम भले ही अपने जन्म-दिन पर मंदिर ना जाएँ , अपने माता-पिता से आशीर्वाद ना लें चलेगा , अगर आपने अपने जन्मदिन पर अपने यार -दोस्तों को शराब , मांस -मछली आदि की पार्टी नहीं दी तो सब कुछ बेकार है ! आप कहलायेंगे पक्के देहाती ! बड़े-बड़े होटलों में हमारे घरों की गृहणियों की " Kitty-Party " के नाम पर शराब , ताश के पत्तों का खेल और भी बहुत कुछ जो हमारे संस्कारों में नहीं है ! आज रोज-मर्रा की चीजें हैं ! यह सब कुछ पहले नहीं था , किन्तु अब हमारे देश में विदेशी कल्चर की बाढ़ सी आ गयी है , और इस बाढ़ से आज कोई भी घर अछूता नहीं बच पाया ! आज हमारे यहाँ होने वाले बड़े-बड़े आयोजनों में देशी बालाओं की जगह विदेशी बालाओं की भरमार है ! आज ये विदेशी बालाएं हमारे देश में अपने कल्चर की नुमाइश करती देखि जा सकती हैं ! आज हम सब पागल हुए जा रहे हैं विदेशी कल्चर को अपनाने के लिए ! आज हमको देशी लस्सी में कम विदेशी रम में ज्यादा मजा आता है ! ठीक उसी प्रकार हम अपने संस्कारों को भूलते जा रहे है और विदेशी सभ्यता - संस्कृति के गुलाम होते जा रहे हैं ! आजकल संस्कारों की बात करने वालों को बेबकूफ कहा जाता है ! क्या हम सब बेबकूफ है ?
क्या हम इस बाढ़ से बच पाएंगे ? क्या भविष्य इससे भी भयानक होगा ?
यह कितना सही है और कितना गलत ........... सोच कर बताएं
धन्यवाद
अंग्रेजियत भारतीय संस्कृति बहाने का प्रयास तो कर ही रही है।
ReplyDeletesanjay ji, bahut hee vicharniya post likhi hai, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteमजबूत जड़ों भी हैं इन क्षणिक चकाचौंध के साथ.
ReplyDeleteGlobalization ka zamana hai.. magar sanskritiyon ki achchhi baaton ka aadaan-pradaan hota rahe to hi achchha hai..
ReplyDeleteसांस्कृतिक गिरावट के दौर पर सारगर्भित लेख के लिये बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteसचमुच, चिंता की बात तो है।
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
चौरसिया भाई ...आपने तो कमाल ही कर दिया ...आप मुझसे भी दो कदम आगे ! वाह भाई अच्छा लिखा है आप ने ..लगे रहो इसी तरह मै भी साथ हूँ ! बेहद सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सही विषय चुना है आपने....
ReplyDeleteसबसे पहले बहुत खुबसूरत रचना लिखी है आपने इसके लिए बहुत - बहुत बधाई दोस्त |
ReplyDeleteआपने बहुत सारे मुद्दों को एक साथ उठाया है और सब बाते बहुत ही महत्वपूर्ण है हाँ ये सच है की हमारे बच्चों को बाहर की चीज़े अच्छी लगती हैं पर इनमें काफी हद तक हम खुद भी जिम्मेदार हैं दोस्त हाँ हमारे देश की बेटियाँ कम कपडे पहन रही पर उसमे भी हमारा ही योगदान है क्युकी जब बेटी घर से बाहर जाती है तो उस वक़्त उसे रोकना हमारा फ़र्ज़ है फिर वो पूरी तरह से दोषी कैसे हो सकती है और ये काम माँ बहुत खूबसूरती से कर सकती है बस उसे प्यार और विश्वास बनाने की देरी है | अब बात आई संस्कार की एसा नहीं की हमारे देश के लोग अपने संस्कार भूल गये हैं बस उनकी बेंतहा चाहत उन्हें कुछ वक़्त के लिए इस नशे में भूल जाने को मजबूर कर देती है यूँ समझो की उनकी आँखों पर कुछ देर के लिए पर्दा सा पड़ जाता है |
हमारे देश की लड़कियां फैशन में लड़कों से चार कदम आगे हैं ! सलवार - कुर्ता , साड़ी तो अब मजबूरी में पहनना पड़ते हैं ! वर्ना उनको तो वो कपडे ज्यादा पसंद होते हैं जो शरीर को ढंकते कम और शरीर को दिखाते ज्यादा हैं
ReplyDeleteसब बाते बहुत ही महत्वपूर्ण है सारगर्भित लेख के लिये बहुत बहुत आभार !