प्रेम अव्यक्त है
यूँ तो औरों के लिए
अनसुलझा तार है
पर जो इससे होकर गुजर गया
उसके लिए सरफून है
प्रेम का कोई रूप नहीं
इसे रिश्तों में नहीं बाँधा जा सकता
ना कसौटी पर , परखा जा सकता है
यह परमात्मा का प्रसाद है
यही सही मायनों में जीना सिखाता है
और यही बैराग जगाता है
इसकी कोई सीमा नहीं
इसका कोई नियम नहीं
प्रेम सुसुप्त अवस्था में ले जाता है
प्रेम अव्यक्त है ..........
( प्रिये पत्नि की कलम से )
धन्यवाद
संजय जी प्रेम की बहुत ही अच्छी व्याख्या आपके पत्नी जी की कलम से.......सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
संजय जी
ReplyDeleteप्रेम की भाषा को बहुत गहरे अर्थों में पेश करने के लिए.... शुक्रिया ..यह और भी रोचक बन गया जब आपकी पत्नी ने इसे हमें समझने का प्रयास किया ....धन्यवाद
... bahut sundar ... sach ... laajawaab rachanaa !!!
ReplyDeleteसंजय जी
ReplyDeleteप्रेम की भाषा गहरे अर्थों में पेश करने के लिए....
आपकी पत्नी के लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
बहुत बहुत शुक्रिया आप दोनों का
ReplyDeleteआपके पत्नी जी की कलम से प्रेम की बहुत ही अच्छी व्याख्या....
ReplyDeletebahut achchi lagi.
ReplyDeleteअच्छी कविता, बधाई!
ReplyDeleteprem avyakt hai
ReplyDeletesundar rachna.
बहुत ही खुबसूरत शब्दों मै प्रेम को परिभाषित किया आपने दोस्त !
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई !
प्रेम स्वयं को कैसे व्यक्त करेगा, हम सबके लिये रहस्य है।
ReplyDeleteनवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ..सुसुप्तावस्था ..का उल्लेख विचारणीय है ..
ReplyDeletehappy new year dost
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