Sunday, December 26, 2010

प्रेम अव्यक्त है .... >>>> संजय कुमार

प्रेम अव्यक्त है
यूँ तो औरों के लिए
अनसुलझा तार है
पर जो इससे होकर गुजर गया
उसके लिए सरफून है
प्रेम का कोई रूप नहीं
इसे रिश्तों में नहीं बाँधा जा सकता
ना कसौटी पर , परखा जा सकता है
यह परमात्मा का प्रसाद है
यही सही मायनों में जीना सिखाता है
और यही बैराग जगाता है
इसकी कोई सीमा नहीं
इसका कोई नियम नहीं
प्रेम सुसुप्त अवस्था में ले जाता है
प्रेम अव्यक्त है ..........

( प्रिये पत्नि की कलम से )

धन्यवाद

14 comments:

  1. संजय जी प्रेम की बहुत ही अच्छी व्याख्या आपके पत्नी जी की कलम से.......सुंदर प्रस्तुति.
    फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

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  2. संजय जी
    प्रेम की भाषा को बहुत गहरे अर्थों में पेश करने के लिए.... शुक्रिया ..यह और भी रोचक बन गया जब आपकी पत्नी ने इसे हमें समझने का प्रयास किया ....धन्यवाद

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  3. ... bahut sundar ... sach ... laajawaab rachanaa !!!

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  4. संजय जी
    प्रेम की भाषा गहरे अर्थों में पेश करने के लिए....
    आपकी पत्नी के लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

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  5. बहुत बहुत शुक्रिया आप दोनों का

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  6. आपके पत्नी जी की कलम से प्रेम की बहुत ही अच्छी व्याख्या....

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  7. अच्छी कविता, बधाई!

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  8. बहुत ही खुबसूरत शब्दों मै प्रेम को परिभाषित किया आपने दोस्त !
    बहुत बहुत बधाई !

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  9. प्रेम स्वयं को कैसे व्यक्त करेगा, हम सबके लिये रहस्य है।

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  10. नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं !

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  11. सुन्दर अभिव्यक्ति ..सुसुप्तावस्था ..का उल्लेख विचारणीय है ..

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