डाल से छूटकर पत्ता
डगर डगर भटकता
छिना आधार उसका ,
खो वजूद अपना ,
हवा संग हो लिया ,
पवन के झोंकों को
खुद को समर्पित कर ,
परिणाम जिसका
राह-राह गिरता-पड़ता
फिर जिस डाल से छूटा था
याद करता उसको,
दूर हो उससे ,
किसी अजनबी डगर में ,
कचरे के ढेर में फंस
आंसू तो नहीं , पर
अन्दर ही अन्दर सिसकता ,
सोचता किसको दोष दूं
खुद को या नसीब को ?
( प्रिय पत्नी की कलम से )
धन्यवाद
क्या सजीव चित्रण किया है बधाई. एक सत्य को दर्शाती पोस्ट. बड़ी शालीनता से बहुत कुछ कह गए आप
ReplyDeleteकचरे के ढेर में फंस
ReplyDeleteआंसू तो नहीं , पर
अन्दर ही अन्दर सिसकता ,
सोचता किसको दोष दूं
खुद को या नसीब को ?
.....बहुत सुन्दर संवेदनशील प्रस्तुति
'sochta kisko dosh doon
ReplyDeletekhud ko ya naseeb ko '
isi ohampoh me to zindgi toote patte ki manind bhatakti rahti hai..
sunder aur samvedansheel rachna.
kya baat hai sanjay bhai...
ReplyDeletekamaal kar diya.........nya andaaj...pasand aaya
सार्थक विचार ..... सत्य का जीवंत चित्र करती रचना.....
ReplyDelete*चित्रण
ReplyDeleteBahut sundar bani kavita.. Rani-Sanjay ji ko badhai.
ReplyDeleteaap sabhi ka main dhnyvaad karta hoon,
ReplyDeleteis kavita ke liye badhai ki paatr meri patni " Gargi " hain , yah kavita unhi ki kalam se nikli hai,
अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
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