फूल बनने से पूर्व ही
बिखर जातीं हैं कलियाँ ,
मिल जाते हैं रावण
हर घर , हर गलियां
ना जाने कितनी लड़कियों को
पलकों से ढँक आँखें ,
रोते देख लो ,
झेंपती, उस मासूम को
माँ की गोद में लिपटी
सिसकती देख लो !
झूठी इज्जत की चादर से
घर को क्यों ढंकती हो ?
अन्यायी , निर्दयी समाज से
क्यों डरती हो ?
विश्वास और सुरक्षा ही
छीन ली गयी हो तब
क्या खोने से डरती हो ?
करो संचय अपने में
नयी शक्ति का ,
करो होंसले बुलंद , आवाज बुलंद
करो विरोध इसका !
राम नहीं आयेंगे ,
है इन्तजार बेकार
करना होगा तुम्हें ही
रावण का संहार !
तब ही बच पाएंगी
बगीचे की कलियाँ ,
बन पाएंगी सुगंध बिखेरती
फूल तारो ताजा
करो होंसले बुलंद .............. करो होंसले बुलंद
( प्रिये पत्नी की कलम से )
धन्यवाद
अच्छी और प्रेरणादायक रचना ...
ReplyDeleteफूल बनने से पूर्व ही
ReplyDeleteबिखर जातीं हैं कलियाँ ,
मिल जाते हैं रावण
हर घर , हर गलियां
सही कहा ,,,हालत बहुत नाजुक हैं ...बहुत बढ़िया ..शुक्रिया
inqlabi kavita..
ReplyDeletemitra,
lekhni sarhak hai..
आपकी रचना मंगलवार 07-12 -2010 चर्चा मंच पर छपी है....कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई।
ReplyDeleteprerak rachna!
ReplyDeleteसुन्दर आह्वान
ReplyDeleteखूब ..... बहुत भावपूर्ण रचना ....सार्थक आह्वान लिए
ReplyDeleteek vidrohi kavita ke srijan ke liye meri pratibhashali bahin Rani ko badhaai aur aapka aabhar Sanjay ji.. pata nahin usko lucky kahoon ya aapko??? :)
ReplyDelete