एक ऐसा दौर आया
कि अपनों की वह
पुरानी छाप मिट गयी
एक भयानक तस्बीर खिंच गयी ,
वह सुखद हालात ,
वह चैन ,
जो कुछ था सब मिट गया
अब तो गर्म रेत रह गयी
लोग ना बदले ,
रिश्ते ना बदले ,
पर छाप बदल गयी ,
और फिर सोच बदलनी पड़ी !
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
ये ज़िन्दगी है ये सब तो रिश्तों मे होता ही रहता है। अच्छे भाव। तो गार्गी भी लेखिका हैं? आशा है आगे भी उनको और पढने का अवसर मिलेगा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteगार्गीजी की रचना बहुत अच्छी है ......आगे भी लिखती रहें
ReplyDeletegargi ji ... aap gr8 hain
ReplyDeletewaah,bahut accha likha gargi ji
ReplyDeleteलोग ना बदले ,
ReplyDeleteरिश्ते ना बदले ,
पर छाप बदल गयी ,
और फिर सोच बदलनी पड़ी !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, गार्गी जी...
गार्गीजी की संवेदनशील रचना के लिए आपको और गार्गीजी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना गार्गी जी....
ReplyDeleteबदलते रिश्तों पर सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसम्बन्धों का प्रवाह सदा ही बदलता रहता है।
ReplyDelete.....संवेदनशील अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर.....आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति......
ReplyDeleteगार्गी जी ,हार्दिक बधाई
bahut hi sundar abhivyakti
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