अब कैसे कहूँ , मेरा देश महान ,
भारत " माँ " आप तो हैं महान ,
तेरी मिटटी को अनगिनत प्रणाम ,
पर तेरी गोद में
अब जो खेल रही संतान ,
कर रही तुझको वदनाम ,
राम-कृष्ण को अपना आदर्श माने ,
पर ये क्या ? खुद अन्दर रावण धारे ,
रावण को सिर्फ दशानन कहते ,
पर अबकी संतान के तो अनगिनत चेहरे
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
यही तो विडंबना है , रोती धरती माँ.....
ReplyDeleteअब सब शैतानन।
ReplyDeleteरावण को सिर्फ दशानन कहते ,
ReplyDeleteपर अबकी संतान के तो अनगिनत चेहरे
...yahi to hamari Bharat MAA ki bahut badi bidambana hai..
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
ReplyDeleteभाव और लक्ष्य अच्छा है लेकिन इसे और सुधारा जा सकता है. आप प्रयास करेंगे तो और बेहतर और उम्दा लिख पाएंगे.
ReplyDeleteदुनाली पर देखें-
अन्ना को मनमौन की जवाबी चिट्ठी
वाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता भाई संजय जी बहुत बहुत बधाई |
रचना और भाव दोनों ही सुन्दर हैं!
ReplyDeleteअब रावण के रूप भी समझ नहीं आते .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए गार्गी जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDelete