कब तक रोये रे मानव ,
तू नियति से ना लड़ पायेगा ,
जब जो होना है सो होना है
उसे कौन टाल पायेगा ,
की जो कोशिश --
तो धुंए में लाठी चलाते खुद को पायेगा ,
इसलिए तू ना कर चिंता ,
बस चिंतन कर
और मुस्कुराये जा
दिल रोता है तो रोने दे ,
कुछ पल मत सुन उसकी
तू ठहाका मार हंस , बस यूँ ही ( वे मतलब )
दर्द से जब निकले गीत
तो बस गुनगुनाए जा ,
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
सुंदर अभिव्यक्ति आपका आभार और आपकी पत्नी को बधाई
ReplyDeleteवाह एक परिवार में दुगुनी प्रतिभा। रहे जायें, सहे जायें।
ReplyDeleteसब पूर्वनिश्चित होता है ..गार्गी जी को बधाई ..अच्छी प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteवाह क्या बात कही है गार्गी जी को बधाई।
ReplyDeleteBeautiful excellent.....Very nice...
ReplyDeleteवाह क्या बात कही है
ReplyDeletegargi ji ki rachna bahut achhi lagi...
ReplyDeleteजीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteकब तक रोये रे मानव ,
ReplyDeleteतू नियति से ना लड़ पायेगा ,
जब जो होना है सो होना है
उसे कौन टाल पायेगा ,
कर्तव्यों के प्रति सचेत करती पंक्तियाँ......
दुख को तो सहना ही है चाहे रोकर या हंसकर...तो क्यों न हंसकर काटा जाए...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...