ओरी हवा
तेरा मेरा नाता
बहुत गहरा है
तू दिखती नहीं , तो क्या
महसूस तो होती है
कभी पुरवाई
कभी बसंत
कभी लू बन जाती है
और बारिस को भी तो
तू ही लाती है
तु मौसम के अनुरूप ढल जाती है
और मैं रिश्तों के अनुरूप ,
तुझे क्या लगता है
क्या तू ही अद्रश्य है
मैं भी अद्रश्य हो जाती हूँ
उनकी आँखों से
जिनका मैं अंश हूँ
विवाह के बाद !
महीनों साल गुजरते जाते
फिर भी मेरे प्रति
उनके दिल से " प्रेम की अनुभूति "
मिटती नहीं !
और ना ही मेरे दिल से
पर
मुझे ढलना होता है
नए नए रिश्तों में
जिम्मेदारियों में
मेरा भी ठिकाना नहीं है
तुम्हारी तरहा !
वक़्त और हालत
मेरा स्वभाव
बदल देते हैं
जैसे मौसम
तुम्हारा बदल देते हैं !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
तेरा मेरा नाता
बहुत गहरा है
तू दिखती नहीं , तो क्या
महसूस तो होती है
कभी पुरवाई
कभी बसंत
कभी लू बन जाती है
और बारिस को भी तो
तू ही लाती है
तु मौसम के अनुरूप ढल जाती है
और मैं रिश्तों के अनुरूप ,
तुझे क्या लगता है
क्या तू ही अद्रश्य है
मैं भी अद्रश्य हो जाती हूँ
उनकी आँखों से
जिनका मैं अंश हूँ
विवाह के बाद !
महीनों साल गुजरते जाते
फिर भी मेरे प्रति
उनके दिल से " प्रेम की अनुभूति "
मिटती नहीं !
और ना ही मेरे दिल से
पर
मुझे ढलना होता है
नए नए रिश्तों में
जिम्मेदारियों में
मेरा भी ठिकाना नहीं है
तुम्हारी तरहा !
वक़्त और हालत
मेरा स्वभाव
बदल देते हैं
जैसे मौसम
तुम्हारा बदल देते हैं !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रणय रचना!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteलाजबाब,प्रणय अभिव्यक्ति,,,,गार्गी जी को बधाई,,
ReplyDeleterecent post: वह सुनयना थी,
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
ओ री हवा !
तेरा मेरा नाता
बहुत गहरा है ...
... ... ...
तू मौसम के अनुरूप ढल जाती है ,
और मैं रिश्तों के अनुरूप !
वाऽह ! क्या बात है !
ख़ूबसूरत रचना !
प्रियवर संजय कुमार चौरसिया जी
आभार आपके प्रति ...
सुंदर रचना पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए !
और बधाई आदरणीया बहन गार्गी जी को सुंदर लेखन के लिए !!
आप दोनों की लेखनियों से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे …
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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हवा से अपनी तुलना और वो भी सटीक ...वाह क्या कहने ..
ReplyDeleterecent poem : मायने बदल गऐ
मुझे ढलना होता है
ReplyDeleteनए नए रिश्तों में
जिम्मेदारियों में
मेरा भी ठिकाना नहीं है
तुम्हारी तरहा !
वक़्त और हालत
मेरा स्वभाव
बदल देते हैं
जैसे मौसम
तुम्हारा बदल देते हैं !
sunder tulna hai aur sach bhi hai pyari kavita
rachana
एक काफी अच्छी कविता, रानी को बधाई।
ReplyDeletebahut sunder rachana.
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