किसी आलौकिकता से
कम नहीं होते
बचपन छुटपन के दिन ,
बहुत ज्यादा तड़पा जाता है मुझे
वर्तमान और बचपन की
यादों का संगम
" माँ " आपकी गोद सा सुकून
ईश्वर की पूजा में भी नहीं है शायद
अब जब भी आपकी याद आती है
तो ईश्वर में आपका
चेहरा , कर , कदम
उकेरता है , ये मन
" भईया " अपने बड़े बेटे में
आप दिखाई पड़ते हैं मुझे
और छोटे में खुदकी सी
नादानियाँ नजर आती हैं मुझे
" माँ " आपका वो छोटा सा कमरा , जहाँ
बरसात में हमें , गोद में लेकर
बैठ जाया करती थी वहां
आज उस कमरे के आगे
सारा जहाँ छोटा नजर आता है मुझे !
मैं तो चाहती हूँ कि ,
बचपन भूल जाऊं तुझे
पर हर वार तुझे भूलने में
नाकाम हो जाती हूँ मैं !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
कम नहीं होते
बचपन छुटपन के दिन ,
बहुत ज्यादा तड़पा जाता है मुझे
वर्तमान और बचपन की
यादों का संगम
" माँ " आपकी गोद सा सुकून
ईश्वर की पूजा में भी नहीं है शायद
अब जब भी आपकी याद आती है
तो ईश्वर में आपका
चेहरा , कर , कदम
उकेरता है , ये मन
" भईया " अपने बड़े बेटे में
आप दिखाई पड़ते हैं मुझे
और छोटे में खुदकी सी
नादानियाँ नजर आती हैं मुझे
" माँ " आपका वो छोटा सा कमरा , जहाँ
बरसात में हमें , गोद में लेकर
बैठ जाया करती थी वहां
आज उस कमरे के आगे
सारा जहाँ छोटा नजर आता है मुझे !
मैं तो चाहती हूँ कि ,
बचपन भूल जाऊं तुझे
पर हर वार तुझे भूलने में
नाकाम हो जाती हूँ मैं !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
हे दुर्गे ब्रह्मवादिनी, माँ का भावे रूप ।
ReplyDeleteहोय माघ की शीत या, तपे जेठ की धूप ।
तपे जेठ की धूप, कठिनाई से सदा उबारे ।
याद तुम्हारी बसी, कोठरी घर चौबारे ।
अग्रज दीदी अनुज, बुआ चाचा सब भावें ।
किन्तु श्रेष्ठ माँ गोद, भोगनें भगवन आयें ।।
हम भी अपने पैतृक घर में बचपन की स्मृतियाँ जी रहे हैं।
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteबचपन की यादों को भुलाया नही जा सकता,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK ...: विजयादशमी,,,
....
ReplyDeleteबचपन ... मासूमियत से बढकर क्या है ,जो उसे भूलना आसान हो
ReplyDeletebhut sunder-****
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