Friday, March 26, 2010

थोडा और रुक जाते तो .........>>>>> संजय कुमार

थोडा रुक जाते तो यह चीज और सस्ती मिल जाती, थोडा और रुक जाते तो शायद लड़की और अच्छी मिल जाती ! अक्सर हम लोग इस तरह की बात अपने जीवन मैं, अपनी रोज की दिनचर्या मैं कई बार अपनों के साथ करते रहते हैं ! कभी कभी लगता है की हम शायद सही कह रहे हैं ! पर कभी इस बात पर हम लोगों ने कभी गहराईसे नहीं सोचा, बात ये सही है उन लोगों के लिए जो किसी भी चीज या समय का महत्व नहीं जानते ! क्योंकि समय पर किया गया कोई कार्य कभी गलत नहीं होता ! हर चीज के दो पहलू होते हैं ! पर थोडा सोचना होगा ! अगर हम सब थोडा रुक जाएँ , तो क्या होगा , और क्या हो सकता था ! इसका अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते !
अगर हम थोडा रुक जाते तो कभी भी मंजिल हांसिल नहीं कर पाते ! थोडा रुक जाते तो शायद हम आज भी अंग्रेंजों के गुलाम होते , थोडा रुक जाते तो कैसे करते एक सुनहरे भविष्य का निर्माण, थोडा और रुक जाते तो कैसे देश का नाम विश्व मैं रोशन कर पाते ! नहीं कुछ भी नहीं होता ! अगर हम सब थोडा और रुक जाते ! न बनते इतिहास न बनते भविष्य ! हम जहाँ थे वहीँ रहते ! गुमनाम और दुनिया से अनजान ! न हमारी कोई पहचान होती और न हमारा कोई नाम !
अगर हम और थोडा रुक जाएँ तो क्या होगा ? इसका शायद हम अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे ! आज अगर हम थोडा रुक गए तो, यह देश बिकने मैं कुछ वक्त नहीं लगेगा, थोडा रुक गए तो मजहब की खाई और गहरी हो जाएगी , इन्सान, इंसानियत भूल जायेगा , और हम खड़े होकर देखते रहेंगे अपनों की बर्बादी ! थोडा रुक गए तो पूरी तरह ख़त्म हो जायेंगे बचे कुचे इंसानी रिश्ते ! थोडा रुक गए तो कभी न पा सकेंगे वह बुलंदी जिसकी चाह मैं जी रहे हैं हम सब ! जी नहीं अब वक्त नहीं थोडा और रुकने का ! अब वक्त आ गया आगे बड़ने का और अपनी मंजिल हांसिल करने का !..................

थोडा अगर मैं रुक जाता तो शायद कभी भी लिख नहीं पता ! सारा जीवन हमने निकाल दिया थोडा और थोडा और के चक्कर मैं !



धन्यवाद

2 comments:

  1. बिलकुल सही कहा आपने लेकिन इस बात को समझता कौं है सारी दुनिया तो मृगतृष्णा में फंसी दौड़ी चली जा रही है... सारे कुओं में ही भांग पड़ी है अब कौन बौराए और कौन नहीं..

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