Friday, December 30, 2011

स्वागत ..... स्वागत.... स्वागत २०१२ , नवबर्ष की ढेरों - अनेकों शुभ-कामनाएं ....>>>> संजय कुमार

सर्व-प्रथम सभी ब्लौगर साथियों को एवं परिवार के सभी सदस्यों को नवबर्ष की हार्दिक बधाई , ढेरों अनेकों शुभ-कामनाएं ! आने वाला बर्ष आप सभी के जीवन में नयी उमंग-तरंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप सभी परिवार सहित स्वस्थ्य रहें, मस्त रहें , एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे ! गुजरे साल के अच्छे खुशनुमा पलों को याद कर , बुरे वक़्त को भुलाकर इस आने वाले नवबर्ष का स्वागत करना होगा ! हम अपने बीते बर्ष के उन अच्छे पलों को याद करते हुए , वो पल जो हमें उत्साहित करते हैं , जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं , उन पलों को याद करते हुए आगे बढ़ना है , ना की उन पलों को याद करना है जो हमें हतोत्साहित करें , हमें आगे बढ़ने से रोकें ! हमें अपने सिद्धांतों पर ईमानदारी के साथ द्रण रहना है !


आज मैं कृतज्ञ हूँ आप सबका , आज मैं शुक्र गुजार हूँ आपका , आप सभी ने जो प्रेम-स्नेह , मार्ग-दर्शन मुझे दिया है वह मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूलूंगा , जो स्नेह इस ब्लॉगजगत से मिला शायद ही कहीं और से मिला हो आप सभी यह प्रेम-स्नेह एवं मार्ग-दर्शन मुझ पर ऐसे ही बनाये रखें ! मैं इस नवबर्ष में आपके समक्ष कुछ अच्छा लिखने की पूरी कोशिश करूंगा !


आप सभी परिवार सहित इस नव-बर्ष २०१२ का स्वागत कीजिये


एक बार फिर से नवबर्ष की ढेरों -अनेकों शुभ-कामनाओं सहित


धन्यवाद


संजय कुमार चौरसिया & गार्गी चौरसिया


देव & कुणाल

Friday, December 23, 2011

क्या कहा ?..... " किसान दिवस "........? .....>>> संजय कुमार

मैंने तो आज तक किसानों के बारे में सिर्फ बचपन में किताबों में पढ़ा था कि , भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत के गावों में देश की शान किसान निवास करते हैं ! हमेशा यही सुनते आये कि , किसान नहीं तो भारत नहीं ! किसान अगर नहीं होगा तो इस देश में कुछ नहीं होगा ! और एक नारा " जय जवान- जय किसान " सुना है ! या फिर आजकल किसानों के बारे में सिर्फ एक ही बात सुनने - पढ़ने को मिलती है ! कर्ज के बोझ तले किसी किसान ने आत्महत्या कर ली, या फिर , बीज और खाद के लिए किसान दर-दर भटक रहे हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं हैं ! मुझे दो-तीन दिन पहले ही मालूम चला है कि , २३ दिसंबर को " किसान दिवस " है ! क्योंकि इससे पहले कभी भी मैंने इस दिवस के बारे में नहीं सुना था ! यदि ये गत बर्षों से मनाया जा रहा था, तो मुझे बहुत हैरत और अपने आप पर शर्म महसूस होती है कि , मुझे इस बारे में अब मालूम चला ! यदि ये शुरुआत है और आने वाले बर्षों में भी इसी दिन मनाया जायेगा तो थोड़ी ख़ुशी भी हुई , कम से कम एक दिन तो हम किसानों के बारे में बात कर पायेंगे , वर्ना उनकी सुनने वाला कौन है ? हम सभी बर्ष की शुरुआत होते ही " नव-बर्ष " बेलिनटाइन " महिला-दिवस " माँ-दिवस " पिता -दिवस " मजदूर-दिवस " बाल दिवस " जैसे सेंकडों दिवस हम बर्ष भर मनाते रहते हैं ! किन्तु " किसान दिवस " के बारे में कभी नहीं सुना ! आज इस देश में जो स्थिति किसानों की है वह किसी से भी छुपी नहीं है ! गरीब , लाचार , दुखी -पीड़ित और हर तरफ से मजबूर ! विश्व भर के समाचार पत्र , टेलीविजन , अखबार भरे पड़े रहते हैं ऐसी ख़बरों से जिनमें गरीब का दर्द कहीं छुप जाता है ! कहीं इसका जन्मदिन, कहीं उसकी पुण्यतिथि , कहीं ये घोटाला , कहीं वो भ्रष्टाचार , करोड़ों की शादी , अरबों का टैक्स , आरक्षण , मंहगाई , संसद , क्रिकेट , सेंसेक्स , सास-बहु के सीरियल और ना जाने क्या क्या ! हर दिन बस ऐसी ही ख़बरों में दिन निकल जाता जाता है ! पर इस देश में पीड़ितों की सुनने वाला कोई नहीं हैं ! फिर चाहे गरीब , मजबूर और लाचार ही क्यों ना हों , हाँ पीड़ितों और गरीबों का हक खाने वालों की कोई कमी नहीं है हमारे देश में ! हम लोग हर स्थिति से वाकिफ हैं ! शायद हम बहुत कुछ देखना नहीं चाहते या हम सब कहीं ना कहीं सब कुछ जानकर भी अंजान हैं ! देश के लिए, देश के लोगों के लिए कड़ी मेहनत कर अन्न उत्पन्न करने वाला किसान आज अन्न के एक एक दाने - दाने तक को मोहताज है ! कुछ राज्यों के किसानों को छोड़ दिया जाए जिनकी स्थिति बहुत अच्छी है ! किन्तु देश में ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक है जिनकी स्थति बहुत खराब एवं दयनीय है ! आज किसान हर तरफ से दुखी है ! आज का किसान कर्ज में पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है ! आज कहीं सूखा पड़ने से किसान मर रहा है तो कहीं ज्यादा बारिस किसान को बर्बाद कर रही रही है ! कभी बाढ़ , कभी ओलावृष्टि किसानों को खुदखुशी करने पर मजबूर करती है ! कहीं अत्यधिक कर्ज किसानों की जान ले रहा है ! हम जो जीवन जीते हैं , हम जिस चकाचौंध भरे माहौल में रहते हैं , उस तरह का जीवन जीने की , किसान सिर्फ कल्पना ही कर सकता है ! हमारी सरकार किसानों के लिए कितना कर रही है ! सरकार की ढेर सारी योजनाओं का कितना फायदा किसानों को मिलता है ! ये बात हम सब से छुपी नहीं है ! जहाँ किसान एक -एक पैसे के लिए दर दर भटक रहा है, वहीँ इस देश में कुछ नेता अपनी प्रतिमा लगवाने में पैसे का दुरूपयोग कर रहे हैं ! गरीब किसानों के समक्ष करोड़ों की मालाएं मुख्यमंत्री को भेंट स्वरुप दी जाती हैं और दूसरी तरफ गरीबी से तंग आकर किसान आत्महत्या कर रहा है ! कहीं कोई नेता सिर्फ नाम के लिए अरबों रूपए शादी के नाम पर खर्च कर रहा है ! कहीं कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा है तो कोई कालाधन बापस लाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहा है ! सिर्फ एक दुसरे की टांग खिचाई में ही लगे हुए हैं ! तो कहीं मंहगाई से आम आदमी का जीना दुशवार हो गया है ! एक तरफ देश के कई मंत्री मंहगाई भत्ता , और अपने फायदे केलिए कितने तरह के विधेयक संसद में पास करवा लेते हैं ! इसके बिपरीत किसान अपनी फसलों का उचित मूल्य भी नहीं प्राप्त कर पाते पाते, उन्हें अपनी फसलों के उचित मूल्य के लिए भी सरकार के सामने अपनी एडियाँ तक रगढ़नी पड़ती हैं ! वहीँ राजनेता मंहगाई बढ़ा - चढ़ा कर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और इसका जिम्मेदार किसान को ठहराते हैं ! इतनी दयनीय स्थिति होने के बावजूद हमारी सरकार कहती हैं कि, आज का किसान खुश है ! जब हम लोग अच्छा कार्य करने पर और लोगों को पुरुष्कृत करते हैं , तो फिर जो किसान हर दिन - रात , सर्दी - गर्मी , कड़ी धुप में मेहनत करके हम सभी की जरूरत को पूरा करते हैं तो हम उनको पुरुष्कृत क्यों नहीं करते ? हम उनके लिए क्या करते हैं ? सच तो ये है जब सरकार और सरकार के अन्य संगठन किसानों के लिए कुछ नहीं कर पा रहे है तो हम भी क्या कर सकते हैं ? हमें " शास्त्री जी " का यह नारा अब बदल देना चाहिए " जय जवान - जय किसान " आज हम जवानों की जय तो करते हैं किन्तु किसानों की जय नहीं , क्योंकि आज किसानों की जय नहीं पराजय हो रही है ! इस देश में आज सब कुछ चल रहा है किन्तु किसान नहीं ................................ खुद भूखा रहकर हम लोगों की भूख मिटाने वाला किसान , किसान नहीं हमारा भगवान है ! किसानों को भी एक अच्छी जिंदगी जीने का हक है ! " किसान -दिवस " पर देश के समस्त किसानों को मेरा शत - शत नमन !

धन्यवाद

Saturday, December 17, 2011

हम नहीं चाहते कि, ये लड़ाई कभी बंद हो ....>>>> संजय कुमार

वैसे देखा जाय तो इस देश को हम ही चला रहे हैं और आने वाले हजार सालों तक हम ही इस देश को चलाएंगे ! देखा जाय तो , देश तो अपने आप ही चल रहा है , हमने तो इस देश की लुटिया पहले भी कई बार डुबोई है और आज भी पूरी कोशिश में हम सब लगे हुए हैं , देखते हैं ये कोशिश कब रंग लाती है ! हमारा उद्देश्य देश को आगे बढ़ाने का है ! हम देश को विकसित और विकासशील देशों की श्रेणी में प्रथम स्थान पर लाने के लिए हर संभव कोशिश करने के लिए प्रयासरत हैं ! सच पूंछा जाय तो तो हमारा मुख्य उद्देश्य सिर्फ लड़ना है ! हम कहीं भी कभी भी लड़ सकते हैं ! लड़ने में हम सब पूर्ण रूप से पारंगत हैं ! " संसद भवन " सड़क " मंदिर " घर -बाहर " देश में विदेश में , शादी समारोह में , खेल के मैदान में ! हम बात बात पर लड़ते हैं , बिना किसी बात के भी लड़ते हैं ! सही बात पर भी लड़ते हैं , झूंठी बात पर भी लड़ते हैं ! पक्ष में होते हैं तो लड़ते हैं , विपक्ष में होते हैं तो लड़ते हैं ! हम सरकार में रहकर लड़ते हैं ! हम सरकार से लड़ते हैं ! बिना लड़े , बिना बात का मुद्दा उठाये हमें हमारा खाना कभी हजम नहीं होता ! हमारे लड़ने पर भले ही आम जनता का अहित होता हो , भले ही उनका नुक्सान होता हो , भले ही देश की अर्थव्यवस्था को नुक्सान होता हो , किन्तु इन सब के बीच फायदा सिर्फ हमारा ही होता है ! हम हमेशा सिर्फ अपने भले की सोचते हैं तभी तो " लोकपाल " पर इतने दिनों से लड़ रहे हैं ! हम नहीं चाहते कि , मंहगाई खत्म हो, डीजल-पेट्रोल मूल्य वृधि कम हो , हम नहीं चाहते कि , " कालाधन " मामले पर कोई बात हो , इसे बापस लाया जाये ! इस देश से आतंकवाद खत्म हो , गरीबी खत्म हो , बेरोजगारी खत्म हो , भ्रष्टाचार - घूसखोरी , लूट-खसोट , दंगे-फसाद , धर्म-मजहब के नाम पर होने वाली लड़ाईयां बंद हों ! इस देश में किसान आत्महत्या करता है तो करे , मासूम बच्चे कुपोषण का शिकार होते हों तो हों , देश की युवा पीढ़ी नशे के दलदल में फंसती है तो फसे , इस देश में धर्म की आड़ में महिलाओं का दैहिक शोषण होता है तो हो , भले ही हम अपने वादे पर कभी खरे ना उतरे हों ! ये सारी बातें हमारे लिए सिर्फ मुद्दे हैं , और ये वो मुद्दे हैं जो हमें साल भर अपना काम ( लड़ाई ) करने के लिए पर्याप्त हैं ! हम हमेशा बही काम करते हैं जिसमे हमारा फायदा ज्यादा से ज्यादा हो ! आखिर हम इस देश के महान राजनेता जो हैं ! हम भले ही किसी भी पार्टी में रहें , हमारा उद्देश्य लक्ष्य को कभी भी पूरा ना करना है बल्कि लक्ष्य से भटकाना है ! ये थी राजनेता और उनकी राजनीतिक पार्टियों के मन की बात !

ये है मेरी बात .........>>>> अगर इस देश में राजनेता ना हों तो क्या होगा ? देश में फैला भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा ! गरीबों को उनका हक मिल जायेगा ! देश से कुपोषण , भुखमरी , बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी ! महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार बंद हो जायेंगे ! धर्म -मजहब के नाम पर भाइयों का आपस में लड़ना बंद हो जायेगा ! देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी , देश तरक्की , प्रगति की ओर अग्रसर होगा ! समाज , और देश में कानून का राज होगा ! देश से " अंधेर नगरी चौपट राजा " वाली कहावत दूर होगी ! किन्तु ये तभी संभव होगा जब इस देश से भ्रष्ट , घूसखोर , बेईमान राजनेता और उनकी पार्टियाँ इस देश से खत्म होंगी ! ये तभी संभव होगा जब सच्चे राजनेता और उनकी राजनीतिक पार्टियाँ देश , समाज , आम जनता का हित सोचने वाली बात पर द्रण संकल्पित हों ! जब तक अच्छे राजनेता इस देश में नहीं होंगे तब तक भ्रष्ट राजनेता यही चाहेंगे कि , राजनीति के नाम पर होने वाली प्रतिदिन की ये लड़ाईयां कभी भी बंद हों !


धन्यवाद

Saturday, December 10, 2011

युवा, जोश और आवेश, ख़ुशी और मातम .....>>> संजय कुमार

जोश और आवेश में अंतर तो बहुत नहीं हैं किन्तु इनके अर्थ अलग हो सकते हैं ! एक जोशीला युवक अपने समाज और देश की स्थिति में बदलाव ला सकता है ! किन्तु एक आवेशित युवक अपना और अपने समाज का सिर्फ अहित कर सकता है ! आवेश का एक रूप गुस्सा भी होता है ! जोश हमें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ! जीवन में सफलता हांसिल करने के लिए हमारे अन्दर जोश का होना अत्यंत आवश्यक है ! जोश और आवेश हर इंसान के अन्दर होता है ! मैं यहाँ बात करना चाहता हूँ सिर्फ युवाओं की , उनके जोश और आवेश की ! किन्तु आज के युवाओं के अन्दर का जोश और आवेश दोनों ही उनके लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं ! उदाहरण के तौर पर आपको एक ताजा घटना से अवगत कराता हूँ , हालांकि इस तरह की घटनाएँ आज देश के हर छोटे -बड़े शहरों में प्रतिदिन हो रहीं हैं ! चार जोशीले युवक तेज गति से वाहन चलाने की शर्त लगाते हैं , वो भी रात में शहर के व्यस्त हाइवे पर ( सिर्फ जोश में ) रेस शुरू होती है और चंद मिनटों में सब कुछ खत्म ! एक वाईक पर सवार दो युवक सामने से आ रहे ट्रक से टकरा जाते हैं ! एक मौके पर ही दम तोड़ देता है और दूसरा अपना जीवन बचाने के लिए हॉस्पिटल में आज भी मौत से संघर्ष कर रहा है ! ये आवेश नहीं जोश था ! चार दोस्त किसी पार्टी में आपस में झगड़ते हैं और उन्हीं में से एक दोस्त आवेश में आकर वियर की बोतल फोड़कर एक के पेट में घुसेड देता है ये जोश नहीं आवेश था ! जिस जोश को हम प्रेरणादायक कहते हैं बही जोश आज हमसे हमारी खुशियाँ छीन रहा है , खुशियाँ मातम में बदल रहीं हैं ! आजादी के पूर्व युवाओं में जो जोश था वो सकारात्मक था ! " भगत सिंह " चंद्रशेखर आजाद " राम-प्रसाद बिस्मिल " सुभाष चन्द्र बोस " जैसे क्रांतिकारियों को हम जोशीले युवकों के रूप में जानते थे ! इन सभी के जोश ने भारत को आजादी दिलाई ! ये सभी जोश से भरपूर थे आवेश से नहीं ! किन्तु आज का युवा जोश में भी है और आवेश में भी ! बदलते परिवेश के साथ आज के युवाओं का जोश सकारात्मक कम नकारात्मक ज्यादा है ! आज युवाओं में जोश है तो उल्टी-सीधी शर्त लगाने का , मसलन वाईक - कार रेस , देर रात तक पार्टियाँ करने का जोश , शराब पीने का जोश , नशा करने का जोश , बिना बात लड़ने - झगड़ने का जोश , जोश में आकर सिर्फ गलत काम करने का जोश जिसके परिणाम कभी भी सकारात्मक नहीं होते ! देखा जाय तो देश में सकारात्मक जोश वाले युवाओं का अकाल है ! आज आवेशित युवा दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं !
युवाओं के जोश और आवेश के नकारात्मक परिणाम का फल या सजा आज उनके परिवार को भुगतनी पड़ रही है ! जब कभी कोई किसी दुर्घटना में मारा जाता है तो हम सबसे पहले जोश और आवेश को ही दोषी मानते हैं ! आज के युवाओं में धैर्य और सब्र नाम की चीज बिलकुल भी नहीं हैं ! आज हमारे देश का युवा नकारात्मक पहलुओं की ओर ज्यादा अग्रसर हो रहा है ! इसके कई कारण हो सकते हैं जरुरत से ज्यादा आजादी , माता-पिता द्वारा बच्चों की हर खवाहिश को बिना सोचे समझे पूरी करना , संस्कारों की कमी , नियंत्रण का अभाव , सही मार्ग-दर्शन का ना होना ! बहुत सी बातें हैं जो युवाओं के जोश का नकारात्मक पहलु हमारे सामने लाती हैं ! युवा इस देश का भविष्य हैं ! इस देश को जोशीले युवकों की आवश्यकता है , वो जोश जो देश की तस्वीर बदल दे , ना कि उनकी तस्वीर पर फूलों की माला !
युवाओं अभी भी समय है अपने जोश को सकारात्मक बनाओ ! परिवार की खुशियाँ मातम में ना बदलो !



धन्यवाद

Tuesday, December 6, 2011

प्रधान-मंत्री आज भी बड़ा भोला है ....>>> संजय कुमार

हजार उधेड़बुनों के बीच घिरी जिंदगी

जिंदगी नहीं , लगती एक झमेला है !

परियों और भूतों का लगता यहाँ मेला है !

आज सचिन फिर " महाशतक " के लिए खेला है !

लोकपाल पर " अन्ना " अब फिर से बोला है !

घोटालेबाजों ने अभी तक , ना अपना मुंह खोला है !

मंहगाई , भ्रष्टाचार का राक्षस

आज फिर मुंह उठाकर बोला है !

गरीब की जेब में बचा अब एक ना धेला ( रुपया ) है !

आज राजनीति का अखाडा, अब लगता बन गया तबेला है !

सच कहूँ तो " प्रधान-मंत्री " आज भी बड़ा भोला है !

हर जगह चमचों और चेलों का रेला है !

चेला बन गया गुरु , गुरु अब चेला है !

सास-बहु के झगडे में पड़ता बेटा हर बार अकेला है !

" जीवन की आपाधापी " में लगा इंसान

हजार खुशियाँ होते हुए भी , जीवनभर अकेला है !


धन्यवाद

Thursday, December 1, 2011

माँगना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है .....>>> संजय कुमार

माँगना भी कई तरह का होता है ! कोई सम्मान मांग रहा है तो कोई न्याय मांग रहा है ! कोई औलाद मांग रहा है तो कोई रोजगार मांग रहा है ! एक गरीब यदि मांगता है तो लगता है जैसे कोई भीख मांग रहा हो और यदि एक अमीर मांगे तो लगता है जैसे मदद मांग रहा हो ! देखा जाय तो एक हर एक इंसान अपने जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ मांगने का ही कार्य करता है ! जन्म के पहले माता-पिता भगवान से औलाद मांगते है, कोई बेटा मांगता है तो कोई बेटी मांगता है ! ( आज भी हमारे देश में अमीर हो या गरीब सबसे पहले बेटा ही मांगता है ) बच्चे का जन्म होने पर अस्पताल में नर्स मांगती है , घर आने पर हिजड़े मांगते हैं , दोस्त यार पार्टी मांगते हैं , भाई-बहन नेग मांगते हैं ! माता-पिता बच्चे के लिए अच्छी शिक्षा मांगते हैं , अच्छी नौकरी मांगते हैं , लड़की है तो अच्छा घर-वर मांगते हैं ! लड़का है तो दहेज़ मांगते हैं ! युवा भी अच्छा जीवनसाथी मांगते हैं अच्छी नौकरी मांगते हैं ! बुढ़ापे में माता-पिता अच्छी जिंदगी मांगते हैं ! वैसे देखा जाय तो ये मांगने का सिलसिला जीवन भर चलता रहता है ! देखा जाय तो ये प्रकृति का नियम ही है , आज जो हम मांग रहे हैं बही कल हमारे बच्चे मांगेंगे ! देश में सरकार समर्थन मांग रही है ! " अन्ना हजारे " लोकपाल बिल मांग रहे हैं ! कलमाड़ी - राजा रिहाई मांग रहे हैं ! चोर के पकडे जाने पर पुलिस मांगती है ! आम जनता " कसाब " की फांसी मांग रही है ! बेगुनाह इन्साफ मांग रहा है ! सचिन " महाशतक " मांग रहा है ! जनता सरकार से काले धन का हिसाब मांग रही है ! सबसे ज्यादा अगर कोई मांगता है तो वो है इस देश का नेता क्योंकि वो हार बात के लिए हाँथ फैलाता है और मांगने का धंधा करता है ! पहले टिकिट फिर वोट फिर चुनाव में जीत फ़िर कुर्सी उसके बाद राहत ने नाम पर मदद कभी " सूखा ग्रस्त " कभी " बाढ़ पीड़ित " के नाम पर सिर्फ अपनी झोलियाँ भरने का धंधा करता रहता है ! वहीँ दूसरी ओर पेट की भूख मिटाने के लिए कोई भीख मांग रहा है तो को तन बेच रहा है ! देश के धार्मिक महापुरुष साधू-संत अपनी तिजोरियां भरने के लिए आम जनता से चढ़ावा मांग रहे हैं , आम जनता भी अपनी सुख- शांति मांगने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई लुटा रही है ! मांगने के भी हज़ार तरीके होते हैं , एक तरीके से ना सही तो दुसरे तरीके से मांग ही लेते हैं ! मांगने पर आज तक कितने लोगों की मनोकामना पूर्ण हुई हैं ये तो बही बता सकता है जिसकी मनोकामना पूर्ण हुई हों या मांगने पर सब कुछ मिल गया हो !
सच कहा जाय तो मांगने पर कभी कुछ नहीं मिलता बल्कि हमें उसके लिए प्रयत्न करना पड़ता है ! वर्ना हम अंग्रेजों के गुलाम ना होते , अंग्रेजों ने मांगने पर हमें आज़ादी दे दी होती ! आज़ादी के लिए हमें लड़ना पड़ा , वीरों को कुर्बानियां देनी पड़ी तब जाकर हम आज़ाद हुए ! सचिन भी " महाशतक " के लिए पिछले २२ साल से खेल रहा है ! जीवन में अगर कुछ पाना है हांसिल करना है , सफलता के ऊंचे पायदान पर पहुंचना है तो मांगकर कुछ नहीं होगा इसके लिए हमें अपने जीवन में कुछ सिद्धांत बनाना होंगे , जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित करना होगा , उनको पाने के लिए ईमानदार होना होगा , जी तोड़ मेहनत करनी होगी ! अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का पालन करना होगा ! अब माँगना छोड़ दीजिये और लड़िये अपने हक की लड़ाई !

धन्यवाद