Friday, June 17, 2011

देश के सपूतों से आव्हान .........>>>> संजय कुमार

ऐ आव्हान है देश के सच्चे सपूतों से कि , आप अपने देश की रक्षा करें उन समस्त बुरी ताक़तों से जो देश की एकता को खत्म करना चाहती हैं ! जन्म-भूमि , हमारा देश, वह देश जिस देश में हम पैदा हुए ! भारत देश जिसे हम भारत माता भी कहते हैं ! किन्तु आज इस कलियुग में हमारी भारत माता की हालत बहुत खराब है वह बेड़ियों में जकड़ी हुई है ! भारत माता के हाँथ में एक तिरंगा है जो अपनी पहचान खोता जा रहा है ! उसकी हालत अब पहले के जैसी नहीं रही ! भूंखी , बेबस , और लाचार हमारी भारत माता को आज आतंकवाद , नक्सलवाद , सम्प्रदायवाद , भ्रष्टाचार , घूसखोरी , बेरोजगारी , भुखमरी , कुपोषण जैसे राक्षसों और बुरी ताक़तों ने इस तरह घेर लिया है , जिससे हमारी भारत माता का दम घुट रहा है वह तड़प रही है , कि कोई तो आये, जो उसे इन सब बुरी आत्माओं से मुक्ति दिलाये ! कोई तो आये जो देश के इन दुश्मनों से उसकी रक्षा करे , उनका नामोनिशान मिटा दे ! उसकी करुण पुकार कोई तो सुनने वाला हो ! आज जन्म-भूमि अपने सपूतों से आव्हान कर रही है , उसे उसका असली रूप वापस दिलाने के लिए ! वह रूप जो किसी स्वर्ग से कम नहीं ! भारत -माता कह रही है ! जन्म देने बाली माँ और जन्म-भूमि इस दुनिया में सर्व-प्रथम हैं ! इनका मान सम्मान हमारे लिए सबसे बड़ा है ! तो देश के सपूतों आगे आओ और मुझे बचाओ

जन्म-भूमि के सपूत बोलते चले
जय हे जय हे जय हे जय हे !
आज सारी बेड़ियों को खोलते चले
जय हे जय हे जय हे जय हे !
इस जमीं पे दुश्मनों के पैर हैं जमे
एक-एक पैर को उठाने चल दिए
पैर तो क्या पैरों के निशाँ भी न रहें
दुश्मनों का हर निशाँ मिटाने चल दिए
होंटों पे ये नारा लेके डोलते चले
जय हे जय हे जय हे जय हे !
एक-एक बात का हिसाब मांगने
चल पड़े सवालों के जबाब मांगने
राह आती मुश्किलों से खेलते चले
पर्वतों को भी परे धकेलते चले
शब्द शब्द बो जुबान खोलते चले
जय हे जय हे जय हे जय हे !
जन्म-भूमि स्वर्ग से कहीं हसीन हैं !
इसकी एक-एक बात बेहतरीन है !
खो गया है मान जो, दिलाने चल दिए
इसकी वोही शान, फिर बनाने चल दिए
साँस में बंधी हवा को, खोलते चले
जय हे जय हे जय हे जय हे !

(जननी जन्म-भूमिश्चय , स्वर्गादपि -गरीयसी )

(यह पंक्तियाँ एक फिल्म गीत से ली गयीं हैं )

धन्यवाद

6 comments:

  1. संजय जी ..बहुत ही ओजश्वी आह्वान गीत ..जय हो आपकी...

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  2. जन्म-भूमि को समर्पित सुन्दर रचना...

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  3. प्रेरण और देश के लिये कुछ करने का उतसाह जगाती रचना के लिये बधाई बस वो एक जो सही मायने मे राष्त्र का नेतृत्व कर सके नही मिलता सब सियासत की लडाई लदते हैं और शोर मचा कर चले जाते हैं। शुभकामनायें।

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  4. जन्म-भूमि स्वर्ग से कहीं हसीन हैं !
    इसकी एक-एक बात बेहतरीन है !
    खो गया है मान जो, दिलाने चल दिए
    इसकी वोही शान, फिर बनाने चल दिए
    साँस में बंधी हवा को, खोलते चले
    जय हे जय हे जय हे जय हे !


    आपके इस ओजपूर्ण गीत की भी जय हे जय हे जय हे .
    शुभकामनायें।

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