तलाश है तलाश है, अब मुझको भी तलाश है, जैसे
टूटती हुई सांसों को जीवन की तलाश है
सूखे खेत -खलिहानों और बंजर जमीं को, बारिश की बूंदों की तलाश है
प्यासे को पानी तो भूंखे को रोटी की तलाश है
बेरोजगार को रोजगार की तो बीमार को उपचार की तलाश है
झूंठ को सच की तो वेगुनाह को न्याय की तलाश है
अंधे को ज्योति की तो निर्धन को धन की तलाश है
आज के परिवेश मैं हम सबको तलाश है
तलाश है स्वस्थ्य समाज की, मजबूत राष्ट्र की
सच्चे इन्सान और इंसानियत की,
नफरत के माहोल मैं भाईचारे और प्यार की
इंसानों मैं खोई हुई मानवता की
आतंकवाद से लड़ने वाले योध्हा की
हम सब को अपनों के सच्चे प्यार की
कलियुग मैं राम रहीम और सच्चे भगवान् की
तलाश है कभी ख़त्म ना होने वाली आस की
तलाश है तलाश है अब मुझको भी तलाश है
संजय कुमार
Bahut sahee baat apanee rachana me likhee hai .
ReplyDeleteaaj kee stheeti ye hai ki koi bhee santusht nahee hai apane haal me.
har koi kuch talash me vyst hai .
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ReplyDeleteYe jindagi hi ek talaash hai.. jiski shuruaat apne aap ke zameen par pair rakhne se pahle shuru ho jati hai aur kisi ko ye bhi nahin pata ki jeevan khatm hone ke baad bhi ye talash khatm hoti bhi hai ya nahin
ReplyDeletesabhi ka dhanyabad
ReplyDeleteसशक्त प्रस्तुति ! बधाई !
ReplyDeletehttp://sudhinama.blogspot.com